कभी तू मुझको गले लगाए,
मैं रज के रोऊं, तू मुझे हंसाए।
कभी तो बिछडूंगा मैं भी तुझसे,
तू रब के घर में मुझे सुलाए।
मैं मांगू तुझसे बंदिशों की चाहत,
तू मेरी आंखों से मांगे राहत।
हँसी की चाहत हसीन लगती,
हँसी हँसी में मुझे मनाए।
कभी तू मुझको गले लगाए.......-
तब्दीलियां, रौशन चिराग में कर दो
खामोशियां, बिखरे ख़्वाब में कर दो।
मैं कल ही कुछ बिगाड़ आया हूं दरिया से,
तुम चाहे तो मुझको ख़ाक में कर दो।
अब फ़र्क नहीं पड़ता मुझको मौत आने से "दीप"
तुम चाहे तो मेरा नाम अख़बार में कर दो।
-
यूं हमें देखकर ना इतराया करो,
मेरे कहने पर भी कभी मुस्कुराया करो।
मुझे जो पसंद है लाल रंग,
तुम वो बिंदी लगाया करो।
माना कि शर्म, लाज, गहना है तुम्हारा,
पर मेरे हंसाने पर खिलखिलाया करो।
अपनी आंखों पे थोड़ा काजल लगाया करो,
और आईने में देख खुद से थोड़ा जल जाया करो।
मैं तुम्हारे रास्तों पे फूल बिछा आया हूं,
तुम ख़्वाबों के पंख लगा उड़ जाया करो।
हम तो जहां है वहां रहा करेंगे,
तुम सपनों के आसमां में पंख फैलाया करो।
मैं चाहता हूं तू मुझे, मुझसे भी ज़्यादा प्यार करे,
मेरे एक इशारे पे खिड़की पे आ जाया करो।
मुद्दतें हो गईं तुम्हें देखे हुए,
कभी तुम भी छत पे बाल सुखाने आया करो,
टिकी हुई हैं नज़रें सभी की हमारे प्यार पर,
तुम हिजाब डालकर शहर में जाया करो।-
त'आरुफ में तबस्सुम-ए-बर्क़ थीं, अब ऐब हो गई हैं।
ए ज़िंदगी तू भी किसी नशेमन में क़ैद हो गई है।
चला करती थीं पगडंडियों पर कभी, बेख़ौफ़,
अब ज़माने के ख़ौफ़ से तू भी मुस्तैद हो गई है।
ए ज़िंदगी
तू अब ऐब हो गई है।
-
पाप का युग कहकर तुम जो कलियुग में पापी बन रहे हो,
छिन्न-छिन्न कर देगा कल्कि, तुम उसके दागी बन रहे हो।
ले उठा खड़ग, हाथ में जब वो तुमको पाप गिनाएगा,
तुम थर्राओगे हाथ जोड़के, फ़िर ना कोई बचाएगा।
तुमने जितने वस्त्र हैं खींचे, वो तुमको वस्त्र बनाएगा,
कभी पड़ी जो उसे जरूरत, वो श्री कृष्ण बन आयेगा।
वो देख रहा है सबकी करनी बन के मूरत,
उठी कहीं जो आंख गलत तो बिगड़ी होगी तेरी ये सूरत।
अगर उठा ये हाथ कभी, किसी अबला जैसी नारी पर
वस्त्र भुजा पर बांध वो तुझको रण से रंजित कर देगा।
वो तुझको खंडित कर देगा,
तेरे धड़ से वंचित कर देगा।
-
जिनके लिए रंग बिखेरे ज़माने में,
उनको, हम तक आने में ज़माना लग गया।
वो मुस्कुराए अंधेरों में भी, तो सही!
हम बारिश में क्या रोए, बहाना लग गया।
-
मेरा गुजारा हो जाएगा
तू अपना देख लेना
मैं तुझे देखता रहूंगा
तू किसी और को देख लेना-
वो रुकने पे एक क़दम और बढ़ाता है,
ग़लत होने पे नज़रें झुकाता है।
तू, यूं ना किया कर गौर उसकी बातों पे।
वो बातों में एक लहज़ा छुपाता है।
तेरा बार-बार नाराज़ होना मुनासिब नहीं,
वो कहां हर किसी के मन को भाता है।-
क्यों है ये तेवर, जुबां पे अपनी लगाम रखो।
तहज़ीब, तमीज़, ख़ुद-दारी अपने गिरेबान में रखो।
मैं मारा गया हूं पिछले वार से ही,
तुम ये आंखों के तीर अपने कमान में रखो।
क्यों लहू दिखा के आंख लाल करते हो,
क्यों मुझसे लड़कर इक कब्र अपने नाम करते हो।
मुद्दतें हो गई, लड़ा नहीं हूं,
जाओ ये शमशीरें अपने म्यान में रखो।-
मिट्टी हूं, मिट्टी में मिला दूंगा,
तेरे गुनाहों को इस तरह छुपा लूंगा।
दरिया बनकर समेट लूं तेरे आंसु
मैं किनारा हूं, तुझे डूबने से बचा लूंगा।
डोर हूं मैं पतंग की,
तेरे ख़्वाबों को आसमां पे सजा लूंगा।
तू अगर ना मिला तो ना सही!
मैं खुद में ही अपना घर बसा लूंगा।-