07 Untalkative   (Sachin Gaur)
193 Followers · 126 Following

2 MAY AT 1:04

वो क्यों, दूर मुझसे है खड़ी, जो साथ मेरे है बढ़ी!
वो हाथ जिसके हाथ में था, साथ मेरे क्यों नहीं!
वो जो रास्ते कांटों तले, क्यों फूल बन बरसे नहीं!
वो एक पहर का था समय, अब क्यों कभी रुकता नहीं!
वो तेरे लफ्जों का था खिलना, अब शाख पर पत्ते नहीं!
वो थी समय की दास्तां, तुम भी थे मेरे दरमियां कभी।
वो स्तब्ध सा था तेरा होना, अवधारणा अब क्यों नहीं!
मंजूर थे वो रास्ते, चलना कभी जिन पर नहीं!
तुम हो पुरातन सी कला, वो हाथ अब ज़िंदा नहीं!
क्यों हो गई बेबाक सी, कानों में प्यास मेरे नहीं!
तुम थी मेरी सब कुछ मेरी, अब हो गई शमशान सी
वो है चिता जो बुझ गई, क्यों राख भी मिलती नहीं!
तुम हो धरा की वो शिला, छूकर भी जो इंसा नही!
कोशिश करूं के जोड़ दूं, जुड़ने से अब तुम खुश नहीं!
अब रह गई बस मोम सी, पिघली हुई यादें तेरी!

-


27 APR AT 16:21

जब भी कुछ सही ना महसूस हुआ मुझे,
छुआ मैंने अपने अधरों से तुझे;

चाहत हो, मेरे बिगड़े पल की राहत हो।
"कॉफी"
तुम फिर याद आने लगी हो!

-


16 APR AT 21:03

अब मरने के बाद सुकून आया।
तू मुझे, मुझमें कहीं, नज़र ना आया,

काटी सारी उम्र, साथ में तेरे,
तू मुझको फिर भी शमशान पे अकेला छोड़ आया।

-


5 APR AT 22:17

बंट रही थी खैरात में मोहब्बत,
इक तिनका हम भी समेट आए.........
आगाज़ हुआ, उड़ गए होश, मद्धम-मद्धम......
ज़हर चखाया उसने, एक घूंट पिला के मद्धम-मद्धम।
महसूस हुआ था हमको भी, दो घूंट चढ़ा के मद्धम-मद्धम।
बुझी आग को सुलगाया, कुछ ख्वाब सजा के मद्धम मद्धम।
ढलती सांझ उमड़ता इश्क, बर्बाद हुऐ हैं मद्धम-मद्धम।
गिरता पंछी, थामा उसने, हाथ लगा के मद्धम-मद्धम।
घाव दिया, बर्बाद किया, आबाद हुआ हूं मद्धम-मद्धम।
ज़हर चखा है हमनें भी, एक घूंट पिया है मद्धम-मद्धम।
एक घूंट पिया है मद्धम-मद्धम।

-


17 MAR AT 16:16

गिरे तो बेशक जमीं पे, नीचा उसने खूब दिखाया।
हुई इज़्जत नीलाम, हमने भी जाम में खूब बहाया।

तमाचा था जोरों का, हमने भी नाच, रंग रचाया।
बंद रखी जुबां अपनी, गंदगी को कहां हमने मुंह लगाया।

-


10 MAR AT 23:55

लिखा मैंने तुम्हें शामों में, बरसातों में
अगस्त की रिमझिम यादों में, कि तुम मेरे हो।
आज फिर वो तन्हाई सी उठी, मेरे सवालों में
के तुझे हांसिल करना ही मोहब्बत है,
तो जा मैं मोहब्बत, तुझसे नहीं करता,
बात अलग है वो के सुनता हूं तेरे लफ्ज़ों को बार बार।
अब तो मैं तेरे इश्क़ से भी मोहब्बत किया नहीं करता।
और करता होगा दीदार वो तेरा अक्सर।
अब, मैं तस्वीर जलाने में,
बेफिजूल वक्त किया नहीं करता।
तेरे इश्क़ से मोहब्बत, अब किया नहीं करता।

-


29 FEB AT 6:44

जच रही थी, सूरत पे उसकी
एक झलक मासूमियत की।
क्या देखा मैने, कल शाम का किस्सा,
वो भी थी उस भीड़ का हिस्सा।
नूर था उसके, चेहरे का ऐसा,
लग रहा था, बिलकुल तेरे जैसा।
हुबहू था बालों का ढंग वो,
हल्के काले से घुंघराले,
मूंद के पलकें देखा जो हमने
था एक सपना, तुझको पाने जैसा।
कल शाम का किस्सा......

-


11 FEB AT 14:48

शहर बदला, नजारे बदले
समंदर ने अपने किनारे बदले।
मांझी ने कस्ती को एक छोर पे क्या रोका
आरोही के दस्तूर हजारों निकले।
और गुज़र गया एक बरस पूरा उनका,
याद उनको भी ना आई,
तो हमने भी मंजर सारे के सारे बदले
शहर बदले नजारे बदले।
समंदर तो खारा था ही,
वो नदी के छोर भी बिल्कुल तुम्हारे से निकले ।
शहर बदले नजारे बदले।
पराए तो खैर पराए थे,
देख तुम्हे यहां तो, अपने भी सारे के सारे बदले।

-


22 JAN AT 18:28

हम जख्मों को मरहम लगाया नहीं करते।
रूठे हुए को मनाया नहीं करते।

पूरा दिन टहले, घर रात को आया नहीं करते।
अक्सर नींद तो हमें आ ही जाती है, मगर
बिना तेरे बालों को सहलाकर, हम दीपक बुझाया नहीं करते।

-


14 JAN AT 19:49

धुंध ने ओढ़ लिया,  कोई नजर नहीं आता।
दूर तक देखा शहर तुम्हारा, शमशान, कोई नजर नहीं आता।

तुम आकर ढक लो इन पलकों को,
सर्द में, तेरी हथेली से गर्म कुछ और असर नहीं कर पाता।

-


Fetching 07 Untalkative Quotes