पांव में खनकी चाँदी हो जैसे
उसने मुंडेर फाँदी हो जैसे
छत पे दो पल मिलन जुदाई में
धूप में बूँदाबाँदी हो जैसे— % &-
तू सफ़र से लौट कर आएगा जब
सब मिलेगा जस का तस ये भूल जा
संदीप ठाकुर-
पहले ख़ुद को एक अच्छे जाॅब के क़ाबिल करूं
घर ख़रीदूं कार लूं फिर पेश तुझको दिल करूं
तू कोई एग्ज़ाम है क्या पास करना है तुझे
तू कोई डिग्री है क्या पढ़कर तुझे हासिल करुं
संदीप ठाकुर— % &-
ज़िंदगी इक फ़िल्म है
मिलना बिछड़ना सीन हैं
आँख के आँसू तिरे
किरदार की तौहीन हैं
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
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क्या सितारों को तका है रात भर पल पल कभी
चाँद के गालों पे पड़ते देखे हैं डिम्पल कभी
संदीप ठाकुर-
जब से चूमा है तूने हाथों को
मेरे इन सूने - सूने हाथों को
खिच गई इक लकीर ऐसी ख़ुद
आई तक़दीर छूने हाथों को
संदीप ठाकुर— % &-
अभी तक महकती हैं कलियाँ लबों की
किसी फूल ने चूमे थे हाथ मेरे
संदीप ठाकुर-
तीन सौ पैंसठ कैलेंडर फाड़ कर
क्या हुआ पिछले बरस ये भूल जा
संदीप ठाकुर-
बाहों में वो है तो उसको प्यार कर
इश्क़ है ये या हवस ये भूल जा
संदीप ठाकुर-
तू निकल आया क़फ़स से याद रख
है अभी तुझ में क़फ़स ये भूल जा
संदीप ठाकुर-