QUOTES ON #SAKAVITA

#sakavita quotes

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25 SEP 2017 AT 10:04

अब बस इतनी सी उम्मीद है तुमसे,
कि  गर फ़िर कभी ज़िन्दगी  दीजो;
इल्तेजा  बस  इतनी  सी  सुन  मेरी,
मोहे फ़िर  कभी न  बिटिया कीजो।

( कैप्शन में )

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17 FEB 2018 AT 1:26

सुना है, तू कहीं दूर चली गयी है!

(अनुशीर्षक में)

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27 APR 2017 AT 8:58

कभी सरहद पर बिखरुं
कभी तेरे आँचल में छिपकर रोऊँ
कभी आँगन की छाँव न देख पाऊँ
तो कभी तेरी याद में टूटता जाऊँ
डर लगता है माई!

( Full Poem In Caption )

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16 FEB 2018 AT 15:39

कब्र में बीत गयी ज़िन्दगी सारी,
वस्ल की रात अब न हुई हमारी।

एक पैर मैंने डाल देखा पापा के जूतों में,
ज़िम्मेदारियों के बोझ से लगने लगा भारी।

मुखौटों के पीछे छिपते रहे चेहरे हमेशा ही,
हर दूजे शख़्स को समझा मैंने बारी बारी।

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4 FEB 2019 AT 21:05

चल आज तेरे प्यार में थोड़ा और पागल हो जाता हूँ मैं,
तुझे रोता देख पहली बार हँसकर मौत को गले लगाता हूँ मैं।

(पढ़ते रहिए...)

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9 APR 2018 AT 11:55

"हम पाँच"

एक समय की बात बताऊँ,
चाँद में थोड़ा शहद मिलाऊँ,
रात में छुपकर ढलता जाऊँ,
मेरी कल्पना तुम्हें दिखाऊँ।

(अनुशीर्षक में)

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12 APR 2017 AT 15:03

मैं क़ुरान के पन्ने पलटता हुआ
गुरूद्वारे की गुरबानी सुन रहा था
गिरजाघर के घंटे की आवाज़
अब भी मेरे कानों में गूंज रही थी
मेरी आँखें श्रीराम के उस मंदिर
पर जा अटकी थी मानो कुछ
अपना सा लगाव हो उसके साथ
बस यही कुछ बातों के बीच गुम
मैं ना जाने कब ख़ुद में खो गया
उस दिन मुझे इस बात का एहसास
हुआ, कि धर्म कितना भी बाँट ले
इस मन को, तन से तो मैं इंसान ही रहूँगा!

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18 JUN 2017 AT 0:08

सारे घर का बोझ,
अपने काँधे पर उठाते हो।
हर शाम खुशियों की टोकरी भर,
घर पर ले आते हो।

पापा, क्या आप से भी ऊँचा है कोई?

क्रमशः

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6 APR 2017 AT 18:50

आज देखता हूँ जब
इमारतों पर खरोंच करती
उस अदना सी नादान बिल्ली को
सोच में बैठा खुश हो जाता हूँ
कि बेअक्ल ही है बेचारी
जो नाकाम सी कोशिशों में जुटी है
बेसुध, बेचैन उसकी अठखेलियाँ
देख मैं पूछना चाहता हूँ उससे
कि चाहती क्या है तू उस दीवार से?
कौन से इरादे लेकर आती है तू रोज़
और ऐसे कौनसा दीवार गिराना है तुझे
बस इसी कश्मकश में दिन ढल जाता है मेरा
और अगली शाम मैं फिर लौट आता हूँ
उसी बिल्ली को
कोई और इमारत खरोंचते देखने को

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12 NOV 2017 AT 20:23

सुबह, शाम, और वीराना;
पल दो पल का फ़लसफ़ा।
दिल कहे तू पास आना;
जाना कहाँ है तू ये बता।

चीखती-चिल्लाती हो तुम;
बिलखती ही रह जाती हो।
चाँद को मनाती हो तुम;
क्यों पास अब न आती हो।

चेहरा मेरा अब दिख रहा;
जो ढँक लूँ मैं बर्बाद हूँ।
मैं बाज़ार में हूँ बिक रहा;
ज़हन में ही मैं आबाद हूँ।

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