QUOTES ON #RK_IWRITE

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17 SEP 2020 AT 7:11

"जो नहीं है हमारे पास वो “ख्वाब” हैं
पर जो है हमारे पास वो “लाजवाब” हैं..."
- A.Bachchan

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3 APR 2020 AT 10:54

हम औरत है।
समाज का बडा हिस्सा हू मे । समाज की निर्माणकारी हू मे ।।
समाज मे जो भी दुःख दर्द है । सहने की आदत हे हमे ।।
हम औरत है ।।

शांती का प्रतिरूप हू मे । क्रांती की ललकारी भी हू मे ।।
वक्त पे सावित्री, वक्त पे रमाइ । कभी इंदिरा तो कभी राणी लक्ष्मीबाई बनणे की आदत हे हमे ।।
हम औरत है ।।

इस मिट्टी की माई भारत माता हू मे । इस मिट्टी को जगानेवाली सरोजिनी भी हू मे ।।
भारत का झेंडा वसुंधरा पे लहरानेवाली सुषमा भी हू मे ।
घर के साथ देश चालणे की आदत हे हमे ।।
हम औरत है ।।

भारत रंगे फूल का गुलदस्ता हे । उस फूल की रंगकारी हू मे ।।
हम रंगकारी को उखडनेकीं कोशीश ना करना ।
वरणा लाल रंग के इस्तेमाल की आदत हे हमे।।
हम औरत है।।

आदमी की तरक्की के पीछे का करण हु मे ,और ना हू बरबादी का ।
गलती करता तो आदमी है, हम नही ।
फिर भी सजा पानेकीं आदत हे हमे ।।
हम औरत है ।। -
रामेश्वर काळे
(ऊन सभी औरतोको समर्पित जो खुद के औरत होनेपर नाज करती हो)

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21 SEP 2020 AT 7:32

वो एक पल था,
जिंदगी खुशियोसे थी भरी,
रिश्ते थे उचाईके टोक पे,
सब का था साथ हमें,
ज़ब पूंजी हमारी भरी थे पैसो से

आज पैसो ने साथ छोड़ा तो
जिंदगी और रिश्ते खत्म से होने लगे है
ना ही है किसी का साथ
पूंजी बस उन्ही यादो से भारी है
और जिंदगी उन्ही पल पे ख़डी है
वो एक पल था

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20 SEP 2020 AT 0:30

अगर कर्म को ही जीने का धर्म बनाओगे तो जिंदगी तत्वों की कहानी बन जाएगी।

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23 SEP 2020 AT 12:23

सारी रात करता रहा बात
तेरे बिना,
तुम्हारे तस्बीर के साथ।

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20 SEP 2020 AT 19:26

एक ख्वाब, एक याद,
एक बात, एक रात,
कभी ख्वाब था अब याद बनी है
बाते होती थी हर सुबह कैसे बीते हमारी राते
क्या अजीब है ना??? ...

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1 OCT 2020 AT 6:01

झूठा है शहर ये झूठे है रास्ते
झूठे है यहां बसे लोग और उनमे बसा दिल
झूठे थे ख्वाब जो आपने हमें दिखाए
झूठी थी बाते जो आपने हमें बतलाई
सब था झूठा बस सच था दिखावा
हम भी हो गए झूठे क्योंकि आपको सबसे सच्चा मान लिया है हमने

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7 OCT 2020 AT 13:29

ये मिडिया देश बेचने चला है
न्यूज़ बेचीं जा रही यहां, या बेच रहे है देश
न्यूज़ को रखके सबसे पीछे सनसनी अब बनने लगी न्यूज़

ये मिडिया देश बेचने चला है
पैसा ही अब न्यूज़ बनाये, न्यूज़ को पैसा प्रचार बनाये
न्यूज़वाला मिडिया अब न्यूज़ छोड़ चूका है, क्योकि वो देश बेचने चला है

ये मिडिया देश बेचने चला है
कहने को तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ, कहने को भी आती है लज्जा
आया था लोकतंत्र को बचाने, अब देश को बेचने चला है

ये मिडिया देश बेचने चला है
विपक्ष कहा है का नारा अब आम सा हो गया,
आम आदमी भी इस जहांसे मे पूरी तरह फस चला,
अब चैनल ही ना दिखाए उनके काम, तो क्यों ना भूले उनको आम
ये चैनल अब एक ही काम करने लगा है

ये मिडिया देश बेचने चला है

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22 SEP 2020 AT 8:42

बहुत सा वक़्त मेरा यही सोचने में खर्च होता है
की उसकी सोच में अपना वक़्त नही खर्च करना है

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3 OCT 2020 AT 8:03

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