बेवजह कुछ नहीं है, इस भरे जमाने में,
वज़ह भी तलाशती है बेवज़ह, अफ़साने में,
वज़ूद भी ढूँढता रहा, ख़ुद को पहचानने में,
वजह भी मनाता रहा बेवज़ह, ख़ुद को मनाने में,
कभी मिला भी था बेवज़ह, वज़ह कोई थी नहीं,
उसको बेवज़ह समझाता रहा, वज़ह समझाने में,
क्यूँ बेवज़ह उलझते रहें हम, जब वज़ह पास हो,
उलझने भी सुलझ जाती हैं, बेवज़ह सुलझाने में,
बेवज़ह तारीख़ें मिलती रही, जब उन्हें मंज़ूर था,
तारीख़ें भी बेवजह बीत रही है, रिश्तों को मनाने में !!-
रातें जम चुकी हैं,
सर्द हवाओं का सैलाब है,
ठंड ने जो जलाए तुम्हारे ख़त,
ये उन बातों का जवाब है,
वो रातें भी बड़ी थी,
जब ख़त मिला करते थे,
उसमें जो महक मिलती थी,
उनके वादे भी हुआ करते थे,
इक याद है जो तेरी बातें,
बाकी सारी पतझड़ बन गयी हैं,
कुछ फूल मोहब्बत के बने,
बाकी जीने कि सज़ा बन गयी है
ठंडी हवाओं ने जब छेड़ा ज़िक्र,
यादों ने लंबी फेहरिस्त बनाई है,
शाम भी उलझ गयी तेरी यादों में,
गर्म चाय ने याद तुम्हारी दिलाई है,
ज़िक्र करता हूँ तो साँसे उधड़ती है,
फ़िक्र करता हूँ तो आंहे मचलती है,
दिन भी गुज़रता नहीं अब इक पल,
जेठ कि धूप में, बारिशें गरजती हैं !!-
किसी को चाहो भी तो बेवज़ह चाहो,
क्यूंकी इश्क़ करने कि कोई वज़ह नहीं !!-
काश कोई मिल जाता सूरज को इश्क करने के वास्ते,
चांद की तरह वह भी थोड़ा नरम हो जाता !!-
कुछ मोड़ ऐसे भी होते हैं, जहां इंसान बदल जाता है,
दिखावे की मुस्कुराहट रहती है और किरदार बदल जाता है !!-
कितना मुश्किल है आंसू से दर्द लिखना,
जैसे आंसू से, आंसू पर, आंसू लिखना !!-
ज़िंदगी का इशारा मिला,
कुछ तो बात थी,
जो तेरा सहारा मिला,
समुंदर ने तो डूबा ही दिया था,
अपने भँवर में,
इक तेरी मोहब्बत थी,
जो मुझे किनारा मिला !!-
जब से हुए हैं, सिर के बाल सफ़ेद,
तब से हमने उम्र गिनना छोड दिया !!-
रात से सुबह तक का सफ़र बहुत बाकी है,
अंधेरे को चीरने के लिए, इक रोशनी काफ़ी है,
कद आसमां का कितना ही ऊंचा हो जाए,
उसकी औक़ात दिखाने के लिए, पंख फैलाना बाकी है !!-
मौत कि जंजीरों को चूम कर, शान से कुर्बान हुए,
क्या वो हिन्दू, क्या मुसलमां, सब देश पर बलिदान हुए,
देश के आज़ादी कि क़ीमत, ख़ून बहा कर मिली,
शान से खून को सींच कर, धरती के गुलज़ार हुए,
क्या वो हिन्दू, क्या मुसलमां, सब देश पर बलिदान हुए,
गांधी कि इस धरती पर, अहिंसा ने सबको जोड़ा है,
अहिंसा कि राह चलते सब जान से बेजान हुए,
क्या वो हिन्दू, क्या मुसलमां, सब देश पर बलिदान हुए,
भगत सिंह कि फांसी हो या हो सुभाष कि कुर्बानी,
इंकलाब के बुलंद हौंसलो से, ये वीरभक्त महान हुए,
क्या वो हिन्दू, क्या मुसलमां, सब देश पर बलिदान हुए,
सन सत्तावन कि धार ने, जब अंग्रेजों को तोड़ा था,
उस आजादी कि लौ ने, गली गली मशाल तैयार हुए,
क्या वो हिन्दू, क्या मुसलमां, सब देश पर बलिदान हुए,
जब चोले को रंग सजाकर, बलिदानों ने ओढ़ा था,
उन बलिदानों कि कहानी ने, इंकलाब तैयार किए,
क्या वो हिन्दू, क्या मुसलमां, सब देश पर बलिदान हुए !!-