के भटक रहे हैं आज जो,
ये मज़दूर दर-बदर
फिर शायद न लौट पायेंगे,
रोटी के लिए शहर ।-
1 MAY 2020 AT 10:31
30 APR 2020 AT 11:03
आसमां का गुरूर तो देखो,
आज उरूज़ पे आ गया
एक सितारे को फिर वो,
जो जमीं से चुरा गया ।-
29 APR 2020 AT 21:28
एक आख़िर अदाकारी ये उसकी
और सबको अपना फिर, वो क़ायल कर गया
जहाँ शहर के शहर थे बंदिशों में पड़े
वहाँ खुदको मुकम्मल देखो,' वो ' रिहा कर गया ।-
22 MAR 2020 AT 11:14
सब अपनी हदों में हैं
ये सब एक सपना सा लग रहा है
बाहर माहौल भी खुसनुमा है
और हर घर आज "घर" सा भी लग रहा है
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29 APR 2020 AT 8:06
कितना भी बेमिसाल रखलो, चाहे आईना
चेहरे की एक उदासी और वो हार जाता है !
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16 MAR 2020 AT 23:56
मेरे हिस्से के ख़्वाबों को मेरा,इंतेज़ार बहुत है
पर नींदें बे-ज़ार हैं ये मेरी,जाने क्यूँ आजकल
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