इश्क़ से आज़ाद किया मैंने तुमको ,तुमने मुझको,
मगर हर पहर मिलने को जो तड़पते हो,
उसका क्या?
बिना इजाज़त आते हो ज़हन में मेरे,
सुबह शाम जो मेरे दिल में तुम धड़कते हो,
उसका क्या?-
आक्रोश तो है आनंद नहीं,
आज़ाद हो तुम पर अमर नहीं,
कभी अपनी तरफ़ भी देखो,
खुद पर ही खुद की नज़र नहीं।
बेबाक हूं मैं बेअदब नहीं,
बेख़ौफ़ सही बेशर्म नहीं,
खुद को मुझ जैसा कहते हो,
मैं तुम जैसी हूं मगर नहीं।।-
बड़े शहर के
बंद घरों की दीवारें,
बड़ी ख़ामोशी से
बयान करती हैं,
सन्नाटे काली रातों के
अंतर्द्वंद्व जज़्बातों के।-
पलकों पर तुम्हें बिठाया था
हर दम साथ निभाया था,
मैं कभी नहीं भूलूंगी
जो सिला दिया तुमने।
हज़ारों ख़्वाब बुने तुम्हारे
लाखों झूठ सुने तुम्हारे,
इस ग़म को अब सहुंगी
जो तोहफ़े में दिया तुमने।
कैसे भी हो हालात
कितनी भी बड़ी हो बात,
मैं अब भी यही कहूंगी
कि ग़लत किया तुमने।-
यूं तो भूलें हैं लोग हमें पहले भी बहुत से,
पर तुम जितना उनमें से कोई याद नहीं आया।
सहा बहुत कुछ है ज़िन्दगी में हमने भी,
पर किसी ने कभी इतना नहीं सताया।
साथ पूरा करने के वादे किए
तोड़े तुमने ही फिर मेरे सारे सपने,
तुम थे भी या नहीं , कभी मेरे अपने।
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रब ना करे कि महफ़िल किसिकी वीरान हो,
ना बहें इस कदर आखें कि बारिशें भी हैरान हो,
जान बूझ कर तो कोई यूं टुकड़ों में बंटता नहीं,
अंदाज़ा है कि नादान हो या अंजाम दे अनजान हो।-
चाहता है ख्वाहिशों की मंज़िल,
दौड़े आते हैं ख़्वाब निरंतर,
आस में कि हम भी हो मुकम्मल,
भीड़ में शामिल खामोश रूह को,
एक बार मनाने को ही शायद,
टूटे बिखरे से असहाय साहस को,
एक दफा जगाने को ही शायद,
शोर मचाता रहता है दिल।
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जान लेना भी नहीं इतना बड़ा गुनाह यहां,
दिल के सौदे में ही जितने हम बदनाम हुए।-
खुद ही खुद में, खो जाने से पहले,
पा गए हैं हम, सुकून अपना,
अब नहीं जाएंगे, किसी सफ़र पे,
ना देखेंगे अब, कोई नया सपना।
रास्तों ने हमको, मिलाया है खुद से,
अब ठहर कर ज़रा, ये मज़ा लूट लें,
हम तो पा चुके हैं, अपने हिस्से का सब,
जिसके हिस्से हम आते हों, वो हमें ढूंढ ले।-
सुनो,
दोस्ती, इश्क़, वफाएं,
भारी शब्द हैं बहुत,
हंस कर बात जो करलू ज़रा
दिल पर ले जाते हैं लोग यहां।-