मेरा हाल एक पतंग सा है,
जिसका ख्वाब आसमां से लंबी उड़ान का है,
पर मांझा उसका कुछ रिश्तों में उलझा हुआ और
ज़िम्मेदारी कि रख्खे हर डोर को सुलझा हुआ,
फ़िर उम्मीदें सबकी... वो रहे उड़ती हुई पर एक दायरे में सिमटी हुई।-
कोई पतंग ऐसे अपनी उडान भरती है।
गोली जैसे कोई रफ्तार पकडती है।।
सामना होता हैं हवा से जब उसका,
तो चिर के आसमां वो आगे बडती है।
अगर आ जाये मस्ती मैं वो कभी,
तो कला-बाजियां हवा से करती है।
जब हो मुकाबला दुश्मनों से उसका,
तो वह बैखौफ हो कर लडती है।
कहने को तो मांझा प्यार है उसका,
असल में वो अपनी आजादी पे मरती है-
पतंग के जैसी होतीं हैं लड़कियों की जिन्दगी भी
जिनकी डोर हमेशा किसी और के हाथों में होतीं हैं।
वो भी उड़ना चाहती हैं अपनी मर्जी से खुले आसमान में,
पर इसकी उन्हें कभी इजाज़त ही कहाँ होतीं हैं ।
कभी बाप कभी भाई कभी शौहर तो कभी बेटा
हर एक की मर्ज़ी इनकी जिन्दगी से जुड़ी होतीं हैं ।
जब भी चाहती वो तोड़ के डोर को पूरे आसमान की सैर करना
तब वो मायके के संस्कार और ससुराल की जिम्मेदारियों से घिरी होतीं हैं ।
धीरें-धीरें उसे भी पतंग के जैसी जिंदगी को जीने की आदत हो ही जाती हैं,
आज़ाद हो कर भी वो किसी न किसी डोर में बँधी ही होतीं हैं ।
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Kuch patang si hai zindagi
Kuch maanjhe si hai saanse..
Udd le jab tak dor hai haatho me
Inn behati hawaao ke sahare...-
रिश्ता तो पतंग और मांझे जैसी होनी चाहिये।
डोरियां बन्धन नहीं, बस एक कड़ी बने जुड़ने की।-
कुछ शब्द, कुछ किस्से जहन में ऐसे उतर जाते हैं.....
कभी पलकों पर आंसू तो कभी ख्वाब दे जाते हैं!!-