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ज़िन्दगी हर पल कुछ खास नहीं होती,
फूलों की खुशबू हमेशा पास नहीं होती,
मिलना हमारी तक़दीर में था वरना,
इतनी प्यारी दोस्ती इत्तेफाक नहीं होती।
तुम दोस्त बनके ऐसे आए ज़िन्दगी में,
कि हम ये जमाना ही भूल गये,
तुम्हें याद आए न आए हमारी कभी,
पर हम तो तुम्हें भुलाना ही भूल गये।-
उन्हें देखने के लिए हमारे ये नैन तरसते हैं,
फिर क्यूं उनके आते ही हम पलकें झुका लेते हैं।-
झुका लेती है ख़ामोशी से पलकें अपनी,
वजूद अपना,उनकी आँखों में तलाशकर..
फिर जो ख़ामोशी ठहरती है गुफ्तगू के बीच,
इबारतें बेचैनियों की लिख जाती है गहरी होकर..-
आंखों में जब भी पानी आए पलकें झुका के रखो
जुवां पर नफरत कितनी भी दिल क़ो इश्क में डूबा के रखो
दर्द मालूम हो जाए जमाने को कोई आने वाला नहीं
जब भी खुशियां आएं घर में तो जमाने से छुपा के रखो-
जो नाराज़गी को शब्दों के जरिए
दिल से निकाल फेंक देते हैं,,
वही लोग अक्सर
दिल के एकदम साफ होते हैं ll
जो हर बात पर खुद से पहले
औरों की सोचने लगते हैं,,
वही लोग अक्सर
सबको बेपनाह प्यार करते हैं ll
जो मोहब्बत को जताना ना सही
पर निभाना अच्छे से जानते हैं,,
वही लोग अक्सर
रिश्तो को खोने से डरते हैं ll-
आए तेरी जिंदगी में
कोई और एकदम तेरे जैसी
जिसकी कदर हो तुझे बेपनाह
और वो तेरी फिक्र को ना समझे
न्योछावर कर जाए तू
दुनिया की सारी खुशियां उस पर
पर वक्त मांगने पर
तुझे तेरी तरह ठेंगा दिखाए
मिले कोई ऐसी तुझे
जिस से बात करने को तू तड़पता रहे
तेरे सामने से ही वह
किसी और के साथ गुजर जाए
रहे वह जब साथ तेरे
तेरे हर सुख को अपना ले
परेशान पाकर तुझे वो
अपने वादों से मुकर जाए-
मिलेंगे जल्दी ही तुमसे
यह तसल्ली दिया करते थे खुद को,,
पर जब वक्त आएगा मिलने का
तो यह दिल खुद को बेचैन पाएगा ll
तुम्हारे करीब आकर
शायद खो जाएंगे आंखों में तुम्हारी,,
इतने दिनों बाद ही सही
पर वो लम्हा नसीब में तो आएगा ll
देख कर तुम्हारे चेहरे को
मुस्कुराते रहेंगे हम मन मन में,,
पास बैठ कर शायद ही
फिर दोबारा यह बात करने का मौका आएगा ll
सितारों से भरे आसमान के नीचे
जब इजहार करेंगे फिर से इस मोहब्बत का,,
तो चांद भी हमारे इश्क का गवाह बन
हमें हर जन्म यूं ही साथ पाएगा ll-
हर किसी पर विश्वास करने लगी थी
वो प्यार को अब मानने लगी थी,,
भूल गई थी किस्मत के खेल को
वो दुनिया की बातों में आने लगी थी ll
छोड़कर हर फ़िक्र जिंदगी की
वो उसके ख्वाब बुनने लगी थी,,
भुलाकर सारी खुशियां अपनी
वह उसके हर आरोप को अपनाने लगी थी ll
भूल कर खुद की बनाई सारी हदें
वो उसे बेपनाह चाहने लगी थी,,
अपनी मोहब्बत को कायम रखने के खातिर
वो हर बात पर उसे सफाई देने लगी थी ll
जी उसका भी चाहता था कि
मंजिल मिले उसकी अधूरी राह को,,
पर खुदा के हाथ से प्यार की डोर
उसको फिसलती दिखने लगी थी ll-