इतना हमें जला कर,
तू क्या राख मेरी ले जायेगी...
मिट्टी में मिल जाऊं अगर
तो धूल मेरी ही पायेगी !
धरती- अम्बर फट जायेंगे,
तब लोर कहाँ टपकायेगी...
घनघोर घटा जब छाएगी
फिर व्यथा किसे समझायेगी...
खून भरे ये खंजर थामे जब
तू कातिल मेरी कहलायेगी,
फिर व़फा किसे बतलायेगी !
सज़ा मुझे जब देते-देते,
क़ज़ा मेरी तू पायेगी,
बता, ज़रा ...
है फ़िक्र मुझे अब भी
कि ये ज़िल्ल्त कैसे सह पायेगी ?— % &
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