मां, ये तेरे लिए लिख रहा हूं मैं
माना थोड़ी बुढ़ी हो गई हो तुम अभी
पर जब बालों को घुमाकर बांधती हो न, तो सच में बहोत कमाल लगती हो
वो पिली साड़ी जब भी पहनती हो न, तो सच में बहोत कमाल लगती हो
वो डायमंड वाली नेकलेस पहन जब तुम आती हो न, तो सच में बहोत कमाल लगती हो
पापा के हाथ में हाथ डाल जब फोटो खिंचवाती हो न, तो सच में बहोत कमाल लगती हो
मेरे तंग करने पर जो चिड़चिड़ाती हो न, तो सच में बहोत कमाल लगती हो
पापा के साथ बैठकर, पुरानी बातों पर जो मुस्कुराती हो न, तो सच में बहोत कमाल लगती हो
हां मां, माना उम्र के साथ बुढ़ी हो रही हो, पर अब भी सच में पहले जितना ही बहोत कमाल लगती हो।-
मां, ये तेरे लिए लिख रहा हूं मैं
हां ओढ़ा देती है तु चादर रातों में कि मच्छर काटे ना
पापा के जेब से निकाल थमा देती है तु पैसे
कि तेरा बेटा अपना शौक़ दबाए ना
था बाहर तो चुपके से भेजवा देती थी तु बढ़ा के
कि कोई दिक्कत आए ना
हां मां, बहुत करती है तु
पर क्या यही प्यार है
गलती तेरा है कि आज मेरा यह हाल है
हूं बेहाल पर लगता ना कि एक मज़ाक है
सहमा सहमा रहता हूं, हरदम अकेला मैं
दी होती तु अगर प्यार मुझे, कब का संभल जाता मैं
कभी थामी तु अपने बेटे का हाथ, यह बता ना
दूर था तो रो लेती थी, पास होने पर अपना जताती क्या?
मज़ाक उड़ाती है उसके जाने का तु खुद ही
क्यों खुद से नफ़रत कराती है यह बता ना?
मरता हूं जीते जी मैं हर रोज
तु भी तो जहर ही दे रही मुझे
तो सूनले तु भी,
कर्ज है यह दुध का, जो मैं चुका सकता नहीं
चला जाऊंगा बहोत दूर, फिर आऊंगा नहीं
भले बाबू सुनने को ही क्यों ना तरस जाऊं मैं
बहोत दूर चला जाऊंगा, वापस आऊंगा नहीं-