अपने प्रेमी के,
मृत्यु उपरांत भी,
लोग जीवन,
गुजार ही लेते है न !
🙄
फिर तुम तो अभी,
जीवित हो सनम,
हम तो आसानी से,
ये जीवन काट सकते है !!-
निकट मृत्यु के है,
तुमसे प्रेम मेरा पिया !
इससे पहले की,
ये अपना जीवन समपर्ण !
मैं इस अपूर्ण,
प्रेम पर कर दूँ पिया !
तुम आ कर मेरा प्रेम,
औऱ मुझे पूर्ण कर देना !!-
शिकायत है मुझे,
उस रब से !
कि सात फेरों से,
सात जन्मों का !
वो बंधन प्रेम का,
तो बांध देता है !
पर मृत्यु देते वक़्त,
साथ भूल जाता है !
एक के बिना दूसरे का,
जीवन संघर्ष बनाता है !
न पा कर मृत्यु उसे,
सुकून आता है !
न जीने वाले को भी,
एक पल चैन आता है !!-
पूरी उम्र यूँ ही,
गुजारी है !
मैंने इंतजार में,
तुम्हारे पिया !
❣️
कि अब अगर,
तुम आना!
तो उपहार में मेरी मृत्यु,
ले आना पिया !!-
मेरी लेखनी का अंत,
तुम्हारे हाथ,
में ही है ठाकुर साहब !
मैंने जीवनपर्यन्त,
प्रेम तुम्हारे,
नाम का लिखा है !
तुम्हें मेरी मृत्यु को,
मेरी जीवनी में,
श्रृंगारित फूलों सा करना है !!-
मैं जानती हूँ मेरे हाथ से फिसल रही है तू ज़िंदगी !
पर तू भरोसा रख मैं निकट मृत्यु के तुझे जाने नहीं दूँगी !!-
लालसा,
नहीं मुझे !
स्वर्ग की,
पश्चात मृत्यु के !
बस बनारस,
के घाट !
मणिकर्णिका,
में !
जीवित में,
सर्वदा रहना है !!-
उम्र तो बहुत लंबी है मुर्शद !
पर मेरी मृत्यु हुए भी अरसा हुआ !!-
अवसान की सांझ
लौटते हुए
आंखो के सामने
जीवन चलचित्र
की अठखेलियों में
मद्धम सुर लोरी गाते
चांद मेरे सिरहाने बैठा है
आसमानी रंग की तितली
मेरी पलकें सहला गई
दरख्तों की खुरदरी बाहों में
झूलते मैंने जुगनुओ को थाम
स्याह रातों को गले से लगाया
सपनों के ज़ीने उतरती चढ़ती
फिसलती रही पहाड़ी नदी के साथ
और समा गई सदियों पुराने
तपस्वी तुंग हृदय में
जगाया नींद से फूलों ने
धर के माथे पर बोसा
और मैं मुस्कुरा दी
हां मैने ताउम्र प्रेम किया है
पहाड़ों से , चांद,
नदियों और समंदरो से
पेड़, फूल, चिड़ियां,
जुगनू, तितली, बारिश
और ...
और किससे?
उससे
जिसे मैंने जिया इन सब में।-
राजा हो या फकीर
सब को यहीं पर आना है
फिर भी अहंकार, द्वेष से भरे है
अंत में सबको मौत से गले लगाना हैं-