सबसे दूर किसी अन्जान सी जगह में ,
शायद किसी नदी के किनारे या पहाड़ी की गोद में ,
या फिर किसी अन्जाने से गांव में ,
क्या ढूढने जाते हो तुम अक्सर ,
कहा खो जाते हो तुम आजकल ,
चला जाता हूँ ढूढने मेरा बचपन,
गांव की तरफ जाती पगडण्डी,
या फिर किसी बगीचे के फल,
मुझे दे देते हैं वापस मेरा घर,
मेरी खुशियां और मेरा कल,
हाँ भाग जाता हूँ मैं अक्सर
दुनियावयी फरेबों से थककर,
कहीं दूर सबसे हर किसी से.,
जैसे चली जाती है पतंग कोई ,
नील गगन में, मांझे से कटकर !
जैसे खो जाती है गरीबों के पेट की आग ,
खुद ही कुछ देर मचलकर गरीबी की आग में ,
कुछ रोज जीना चाहता हूं खुद को.,
मैं भी सबकी नजरों में मरकर ......
©बेपनाह ।
-