वक़्त की उम्दा कलाकारी रही होगी ओर कुछ नही ,
वरना दिल की बातों में आना मुनासिब नहीं था ,
जानते थे वो सब के , मरवाएगा ये इश्क़ एक दिन ,
मगर बढ़ाकर कदम पलट जाना वापिस ,
परवानों के किरदार के लिए वाज़िब नहीं था ।
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ना तो अब तू है कहीं , ना ही तेरी कोई ख़्वाहिश है ,
बस मैं हूँ , ये वक़्त है , और इस वक़्त से मेरी आजमाइश है ।-
आएंगे दौर कैसे भी , जमीर की थामे कमान रखना ,
वो है ऊपर , सब देख रहा है , बस तू ध्यान रखना |
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परेशान कभी परेशानियों से नही होता मैं ,
बस हमें मेहरबानियों से परेशान न करा कर ।
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सब कुछ है पास मेरे , मगर अब कोई आस ही नहीं है ,
बस यही बात है कि तू अब मेरे लिए खास ही नहीं है |
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वक़्त है कि पंछियों को घोसलों अब निकल जाना चाहिए ,
भोर हुई के काफिलों को मंजिलों की ओर चल जाना चाहिये ,
छंटने के बाद बादलों के , दिख रहा है आसमाँ साफ साफ ,
फिजाएं कह रही है की अब मौसम को भी बदल जाना चाहिए-
लबों पे जो आएगी शिकायत , तब भी नहीं कहेंगे ,
ख़यालों ने बगावत कर ऐलान कर दिया ,अब तुम्हारे बगैर रहेंगे ।-
कहाँ हूँ मैं ? के मुझको ढूँढती खुद मेरी नजर है ,
ना पवन को ,ना अम्बर को ,न ही परिंदो को कुछ खबर है ,
हर चीज़ घर कर चुकी है जहन में जो गैरजरूरी है ,
बस एक सुकून है जो भटकता अब दर बदर है ।
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या तो डूबेंगे या तैरके पार उतर जाएंगे ,
अब या तो जियेंगे या फिर गुजर जाएंगे |
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