"तुम मेरी हो।"
तुम्हें जीतना मुश्किल था,
लेकिन कदम बढ़ते गए,
इस विश्वास के साथ कि तुम मेरी हो,
और तुम्हें जीत लिया।
हार ना मानी कहीं, चलती गई,
इस विश्वास के साथ कि तुम सिर्फ मेरी हो,
और तुम्हें पा लिया।
हर तरफ अंधेर में भी तुम,
एक रोशनी सी बन,
मुझे अपनी ओर आकर्षित करती।
गिरती, संभलती, तुझे थामती,
इस विश्वास के साथ कि तुम सिर्फ मेरी हो,
और रोशनी को तेरी छू लिया।
कितने तूफां आए रस्ते में,
मन को मजबूत कर,
पंख फैलाए उड़ती रही,
इस विश्वास के साथ,
कि तुम सिर्फ और सिर्फ मेरी हो,
और तुम्हें सीने से लगा लिया।
तुम कोरी कल्पना नहीं, कोई सपना नहीं,
मेरे अंतर्मन की पुकार हो।
मेरी सफलता, मेरा वजूद हो।
तुम्हें विचार किया,
और तुम्हें हकीकत बना लिया।
मैंने तुम्हें अपना बना लिया।
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