एक बार फिर चाँद लौटेगा तुम्हारी छत पर
तब हो सके तो तुम भी पूछना चाँद से
क्या अब भी वो बिजली के तार पर झूला झूलता है
और क्या अब भी वो
बूढ़े पीपल की टहनियों में उलझ कर
और पत्तों को ओढ़ कर वहीं सो जाता है
देखना एक फिर वक़्त लौटेगा
और मौसमों की तरह लौटेंगी चिट्ठियाँ-
वो जो कागज के कुछ टुकड़े
पिछली मुलाक़ात में
तुम मेज़ पर छोड़ आये थे,
तेरे रुखसत के बाद
वही क़ायनात है मेरी,
अब बेहाल-ऐ-हिज़्रा
भटक रहा हूँ वहीँ ,
तेरी वस्ल की राहत मिले तो
शायद क़यामत हो ...-
देखो...
कोहनी के बल
आसमान से
झाँकता हुआ
हमारा धुँधला चाँद
मुमकिन है कि
कल सुबह
इस बेदिली वाले शहर की
इमारतों के जंगल में
खो जाए
या
दोपहर की बेज़ुबान शोर
इसे निगल ले
सुनो !
हम इस चाँद को लेकर
उस पार चले जाते हैं।-
एक बार फिर मैं पुरानी धूल जमी
किताब के पन्ने पलटूँगा
और कुछ भींगे अक्षर
तपते हुए देह पर रख लूँगा
अक्षर और तप्त हो जायेंगे और
देह की तपिश थोड़ी कम।-
अन्धेरी रात में कराहता हुआ सहमी-सी ख़ामोशी
पलकों को चूमती हुयी बीमार नींद
कुछ देर तक शोर मचाते हुए अनदेखे सपनें
और
कुछ दूर तक फैला रहा तन्हा अन्धेरा
तभी
दर्द ने बाँसुरी के छेद पर अपनी ऊँगली रखी
और
कई ज़ख़्मों की रागिनी बिखर गई
खिड़की के अंदर से खिड़की के बाहर
दो ख़ाली आँखें फिसल कर गिरती है
सितारों की बारिश थमी नहीं है
सड़क के दोनों तरफ़ के दरख़्त ऊँघने लगे हैं
लेकिन
आज फिर बे-आवाज़ नींद
मेरे बिलकुल पास से गुज़र गयी।-
कई बार शाम
Cartado की कप की तरह होती है,
जिसे मैं सुकून से
धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेते हुए
अपने अंदर उतार रहा होता हूँ।
हर लम्हा Cartado की तरह गर्म और कड़क......
जब काफ़ी के कप को पूरे इत्मिनान से
गर्म से ठंडा होने तक अपने अंदर समेट लेता हूँ,
तब ख़ुद में ख़ुद के होने का एहसास
और मुकम्मल हो जाता है।
जी रहा हूँ उसी एहसास को.....-
सपने आकाश की तरह अनंत,
सपने क्षितिज की तरह अजनबी,
सपने बच्चों की तरह मुलायम,
सपने परियों की तरह पंख फैलाये,
सपने कोहरे में सोये जंगलों की तरह,
ऊँघते दिन की तरह सपने
कहते हैं वो अपने सपने बेच दो....
क्या ख़रीदूँगा मैं
अपने सपने बेच कर?-
तुम्हारे माथे की बिंदी के चाँद में
नहाया हुआ रेगिस्तान
और रेत की बंद मुट्ठी सा टीला
जिसमें दो जिस्म एक दूसरे की
रूह तलाशते रहे रात भर
उसी रेत की
ऊँचाई और गहराई में
मानसरोवर तलाशते रहें
प्यास बढ़ती रही
तपिश पिघलती रही रात भर
लेकिन ख़ुद में तुम्हें
और
तुम में ख़ुद की तलाश
शेष है अभी
पूरी कायनात से कह दे कोई
इस रात के बाद फिर सुबह ना हो-
एक बार फिर वक़्त लौटेगा
और मौसमों की तरह लौटेंगी चिट्ठियाँ
तब उन यादों की चिट्ठियों से
कुछ रंग चुरा कर बादल
अपनी मुट्ठी भर लेगा
और बारिश के पानी में
तैरेंगे कागज के नाव।-
सुनो रंगरेज़ ,
तुम मुझे परत - दर - परत
अपने मनचाहे रंग में
रंगते चले गए
फिर , एक दिन अचानक ,
तुम्हें उन रंगों के बहुत भीतर
मेरा भी एक रंग नज़र आया ,
तो तुमने मुझे जला दिया ,
और मुझ जलते को देखा भी नहीं
लेकिन
मैं तुझे ढूँढता रहा।
सुनो रंगरेज़,
एक बार पलट कर तो देखो
इन लपटों में
तुम्हारे ही रंग दिखते हैं।-