दोनों एक साथ बढ़ रहे थे
शाम का अंधेरा और भूखे सो जाने का डर-
रात्रि के तिमिर में..
"अर्थ" कराता है प्रबंध
कामाग्नि को शरीर एवं
जठराग्नि को अन्न का
यही है प्राचीनतम
"अर्थव्यवस्था "
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कभी "गबन" तो
कभी "गोदान" होता है
"नमक का दरोगा"
"प्रेमाश्रय" में रोता है ।
"दो बैलो की जोड़ी"
जाती है "ईदगाह" तलक
"निर्मला" का "मन्त्र"
"पर्दे" में होता है ।।
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#अहिल्या
पतिव्रता से प्रस्तर
प्रस्तर से पतिव्रता
ये अभिक्रिया
उत्क्रमणीय है ही नहीं
आरोप और टिप्पणी
से उस सत्यगामी के
व्यक्तित्व में
रहा कुछ शेष ही नहीं
अहिल्या तेरी व्यथा
किसी ने सुनी ही नहीं
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यदुकुमार ने कर दिया
सन्तों का अपमान
अन्त समय है आ गया
गये थे माधव जान
विरज गये प्रभास में
धरे पाँव पर पाँव
यदुकुल कीर्ति गर्त में
क्या महल क्या गाँव
है अंगुश्ठ शुक चोंच सा
पंछी बैठा जान
बाण चलाये बहेलिया
केशव तज दिये प्राण
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सफ़ेद फ़ेंफ़ड़ॊं की
धुंध से लड़ाई है
स्नायु तंत्र पर
फ़िर से बन आयी है
चीख पुकार है
मची नौनिहालों में
पर उन्होंने राजनीति से
न निजात पायी है
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