मेरे हिसाब से खरगोश जीता,
कम से कम उसने
सुकून की नींद तो ली-
दहल गई है घाटी फिर से
फिर बिल से निकले हैं सांप।
चला है लोहा, हुई है छलनी
मानवता, तुम हम और साख ।।
ठंडी ठंडी पवन चल रही
गूंज रही थी किलकारी ।
प्रकट हुए वो आतंकी जब
तुरत बनी वो चित्कारी ।।
अब बारी है हिंद फौज़ की
चिथड़े रिपु के उड़ाएंगे।
हाथ चले जो बंदूकों पर
जड़ से काटे जायेंगे ।।
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गए दो साल से बारिश की बूंद तक नहीं पड़ी थी,
जानते हुए कि नुकसान होगा,
एक किसान ने खेत में समुंदर का पानी लगा दिया
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देखा होगा आपने उम्रदराज़ों को
खामोश बैठे हुए,
वो चुप इसलिए नहीं हैं कि अशक्त हैं
वे खामोश हैं
नौजवानों के द्वारा अक्सर हो जानी वाली
बेइज्जती से...
वक्त बहुत ताकतवर होता है
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वीरों का कैसा हो वसंत?
हर ओर हो रही हाहाकार,
है सत्य तड़पता बार बार,
प्रतिपल कलि होता सकार ,
कौन करे इस प्रलय अंत ,
वीरों का कैसा हो वसंत?
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मुद्रा का वास्तविक अवमूल्यन
तब होगा जब
मुद्रा का मान आपकी नज़र में
दो कौड़ी का रह जाएगी-
श्वेत वर्ण है पुष्प कुंद से, श्वेत वस्त्र शुभ स्वामिनी है
वीणा हस्ते, वरद मुद्र में, वो पद्मासन विराजनी है
धरे बसंती , करे बसंती, काज बसंत से हों पुष्पित
ज्ञान ध्यान बुद्धि विवेक दे, करें स्वयं को हम अर्पित-
बच्चों को ठंड नहीं लगती
उन्हें ज्ञान ही नहीं है
तापमान के मात्रकों का
वो नहीं जानते कि
हिमांक शून्य होता है
मां का एक चांटा
उनको सुरक्षित रखता है
पश्चिमी विक्षोभ से
..तो बचपना जिंदा रखिए-