पूरा जीवन निकल जाता है
इस अंधविश्वास में कि
"एक दिन सब ठीक हो जाएगा"-
यदि आप बुरे हैं
तो कोई भी काम अच्छा मत कीजिए,
आपके बुरे होने की विश्वसनीयता समाप्त हो जायेगी-
तिरस्कार, उपेक्षा एवं छल
जीवन के सह- उत्पाद हैं,
निःशुल्क प्राप्त होते हैं
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दहल गई है घाटी फिर से
फिर बिल से निकले हैं सांप।
चला है लोहा, हुई है छलनी
मानवता, तुम हम और साख ।।
ठंडी ठंडी पवन चल रही
गूंज रही थी किलकारी ।
प्रकट हुए वो आतंकी जब
तुरत बनी वो चित्कारी ।।
अब बारी है हिंद फौज़ की
चिथड़े रिपु के उड़ाएंगे।
हाथ चले जो बंदूकों पर
जड़ से काटे जायेंगे ।।
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गए दो साल से बारिश की बूंद तक नहीं पड़ी थी,
जानते हुए कि नुकसान होगा,
एक किसान ने खेत में समुंदर का पानी लगा दिया
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देखा होगा आपने उम्रदराज़ों को
खामोश बैठे हुए,
वो चुप इसलिए नहीं हैं कि अशक्त हैं
वे खामोश हैं
नौजवानों के द्वारा अक्सर हो जानी वाली
बेइज्जती से...
वक्त बहुत ताकतवर होता है
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वीरों का कैसा हो वसंत?
हर ओर हो रही हाहाकार,
है सत्य तड़पता बार बार,
प्रतिपल कलि होता सकार ,
कौन करे इस प्रलय अंत ,
वीरों का कैसा हो वसंत?
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