“मोहब्बत”
ग़ज़ल – 1
अपने रूह से मेरे रूह को छू प्यार मेरा अमर कर दो।
मैं हूंँ अधूरा ज़िन्दगी में आकर पूरा कर दो।
खोए हैं एक दूजे के प्यार में होश में आने दो।
टूट कर चाहो ऐसे प्यार को हमारे मुकम्मल कर दो।
तुम अपनी हथेलियों पर मेरे नाम की मेंहदी रच लो।
अपने माथे पर मेरे नाम का बिंदी और सिंदूर भर लो।
धूप में मैं तेरे वास्ते मैं चला अपने बालों की छांँव कर दो।
आँखों में काजल चेहरे पर प्यार भरा आँचल रख दो।
इस क़दर टूट कर चाहो तुम मुझे पागल कर दो।
इक नज़र प्यार से ऐसे देखो मुझे पागल कर दो।
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“ज़िन्दगी का सफ़र”
ग़ज़ल –4
आसान हो कठिन हर राहों पर चलते देखा है।
मंज़िल को ढूँढते हुए ज़िन्दगी का सफ़र देखा है।
लोगों को कभी ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ते देखा है।
तो कभी समंदर के लहरों से टकरा साहिल पर आते देखा है।
सुबह सवेरे सभी के अपनी उम्मीदों से जुड़ते देखा है।
शाम होते ही उन उम्मीदों और ख्वाहिशों को टूटते देखा है।
मंज़िल तक पहुँचने से पहले थक वापस लौटते देखा है।
ज़िन्दगी के अंधेरे को उजाले में बदलते क़रीब से मैंने देखा है।-
“इश्क़ का खुदा”
ग़ज़ल –5
पहली बार देखा तो दिल तेरी ओर झुकने लगा।
दिल मेरा आपसे जुड़ने के लिए बेकरार रहने लगा।
धीरे धीरे आपको अपना ज़िन्दगी बनाने लगा।
दिल मेरा आपको ही सब कुछ मानने लगा।
बस इक तेरे में खोकर ज़माने को भूलने लगा।
दिल मेरा थोड़ा ख़ुदगर्ज होकर बस तेरे खयालों में खोने लगा।
मैंने तुझे अपना सनम दिलबर और जानम नाम देने लगा।
मैंने तो आपको ही अपना इश्क़ का खुदा मानने लगा।-
“तेरे बिन”
ग़ज़ल – 2
आ देख तेरे बिन कैसे जी रही हूंँ मैं।
जैसे ख़ुद की ज़िन्दगी से बेखबर हो रही हूंँ मैं।
नज़रे थकती नहीं आज भी रास्ते वही ढूँढती रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की मंज़िल के लिए कितनी बेकरार रही हूंँ मैं।
ढलती शमा तन्हाई की ख़ामोशी में अकेले ही सिमट रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की तलाश में दिन रात सबसे बे–ख़बर हो रही हूंँ मैं।
धीरे धीरे तेरे प्यार को अपनी रूह में उतार रही हूंँ मैं।
एक बार तुम पुकारो मेरा नाम अपनी दिल के मंदिर में तुम्हें बसा रही हूंँ मैं।-
“मोहब्बत का मंज़िल”
ग़ज़ल –3
आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है।
तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है।
अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है।
शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है।
आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है।
मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है।
इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है।
मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते मंज़िल देख रखा है।
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रचना नंबर – 3
“टूटे दिल का अरमान और स्वाभिमान”
दिल के अरमान एक एक करके टूटे हैं।
आँखों में बसे सारे ख़्वाब झूठे हैं।
कैसे भुला दूँ उनकी यादों को जो मुझसे रूठे हैं।
लगे जाम जब होंठों पर क्या कभी छूटे हैं।
ले गए वो दिल के सारे ख़्वाब और सारे पहचान।
दिल में अब नहीं कोई उमंग नाही अब बचा कोई अरमान।
हजारों दिल पर ताले लगा दिए।
ताकि बंद हो ना कभी फिर खुल जाए।
खोया है हमने कुछ तो अपना सम्मान।
पर नहीं बदला हमने अपने दिल के अरमान।
खोया हो ज़िन्दगी में भले ही सम्मान।
पर ना रखा हमने कभी भी गिरवी अपना स्वाभिमान।-
“मोहब्बत का मंज़िल”
ग़ज़ल –3
आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है।
तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है।
अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है।
शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है।
आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है।
मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है।
इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है।
मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते आपकी अपना मंज़िल बना रखा है।
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किसान
रचना नंबर 5
परिश्रम के देवता और मिशाल
जिन पर रहता कर्ज़ के बोझा का निशान
टूटे फूटे झोपड़ी और कच्चे मकान
की छत से टपकती बारिश
फिर भी उनको तमन्ना रहती बारिश की
देश में सियासत यूंँही चलता रहेगा
सियासत अपनी चालों से
किसान को ऐसे ही छलता रहेगा
वक्त की चाल छल और कपट
जिस पर आज के नेता करते सियासत
मर रहा जवान सीमा और खेतों में किसान
फिर मैं कैसे कहूँ मेरा भारत महान।— % &-
पिता और बेटी
रचना नंबर 4
खुशियाँ देना चाहे बेटी को
पूरे संसार की जिसे करे पिता
बेटी से करता सारी बात
उसे करते वो सदा ही
स्नेह प्यार और दुलार
खुशी से पापा ने बेटी पर
अपनी हर ख्वाहिश लूटा दी
मैंने बस खुशी से मुस्कुराया
पापा ने अपनी बेटी को
सारी दुनिया ही दिला दी
परखती है बेटी अपने प्यार को
उसके लिए पिता ही होते
जिंदगी के पहले हीरो
ढूंढती उन्हें अपने प्यार में— % &-