पीकर जाम़ इश्क का नशे में चूर लगते हो।
मशरूफ रहकर खुद को ही मशहूर समझते हो।-
जिंदगी जीने के लिए, रूह में रवानगी चाहिए।
जगा सके दिल की बुझी आग,ऐसी एक कहानी चाहिए।
कोई ना छूटे, ना बिछड़े इस नन्हे सफ़र पे,
बस कदमों को निशानी,और आंखों में पानी चाहिए।-
क्यों खाली-खाली बैठे हो, खुद पर भी कुछ उपकार करो।
कुछ बुनों-तोड़ो,बांँटों भी, कुछ खुद से भी तो प्यार करो।
ये माँझा मन का है तामीर, इसके टूटने तक प्रहार करो।
है दिन धूमिल,रातें काली, बस जुगनू का तुम इंतजार करो।-
मैं चाहती हूं मैं जानी जाऊंँ-
मेरी कविताओं से,मेरे लेख से।
मेरा आकार,मेरा व्यवहार,मेरा स्वभाव सब एक छलावा है।
मैं पूरी सिर्फ पन्नों पर मिलूंँगी,
पंँक्तियों में उतरूंगी,
छंद से निखरूंगी और इन्हें पढ़ने वाला कोई भी पा लेगा
मेरे अंतर्मन के छितराए हुए टुकड़े।
उन टुकड़ों में कभी तुम्हें
पीड़ा, निराशा, घृणा, प्रेम, उत्साह, सजगता
और भी बहुत कुछ आसानी से सहेजा हुआ मिलेगा।
उसे पढ़ने का तुम्हारा प्रयास एक पहल होगी
मुझ तक पहुंचने की।
पर तुम पहुंँच नहीं पाओगे,
भाव में निहित रिक्त स्थान तुम्हें व्यथित करके भटका देगा,
शब्दों का घेरा तुम्हें जकड़ लेगा,
सत्य की तपन तुम्हारे देह को गलाने लगेगी
और
इतनी पीड़ा सहन करके
तुम्हारा मुझ तक पहुंँचना असंभव है।-
कभी-कभी जो सोचो उसके विपरीत होता है,
ठीक उसके विपरीत।
सुबह से रात इतनी लंबी लगती है जैसे कोई सफर हो जिसकी मंजिल उससे रूठ कर कहीं चली गई हो, कहीं दूर और बहुत दूर,जहांँ से लौटकर अब वह नहीं आ सकती या अब आना भी नहीं चाहती।
पन्नों पर छापी गई बातें हकीकत नहीं होती,एक उम्र लगती है हकीकत को शब्दों में पिरोने को।
जिंदगी के पन्ने हमारे रंगो मुताबिक नहीं रंगे हैं, जहांँ हमने गुलाबी रंग भरा है वहांँ जब नीला रंग दिखे,तो दोनों की धुरी पर आकर बैंगनी से इश्क कर ही लेना चाहिए।
समय चुनौती है और संयम ही हमारा हथियार।
आसान नहीं है नम आंखों से रात भर चांद को निहारना और सुबह होते ही सूरज की वह चमक आंँख में भरकर फिर अपने सितारों को ढूंढने निकल पड़ना।
आंखें खुदगर्ज हैं नींद मांँगती हैं,
इरादे जिद्दी हैं मांँगते हैं मोहलत।-
एक उम्र कम पड़ जा रही है
तुझसे मोहब्बत जताने को,
कि
हर सजदे में ख़ुदा उम्र उधार दे दे।-
यूं ही बैठे-बैठे जो ख्यालों के मकबरे बनाते हो तुम,
क्या वहां हकीकत की चहलकदमी नहीं होती।
ये जो मान लिए हैं तुमने कुछ शख्स अपने,
क्या सच कहते हो तुम्हें गलतफहमी नहीं होती।-
कभी उलझी है
अपनी पसंदीदा स्त्री के
रेशमी बालों पर नजरें,
कभी झुमको
पर भी क्या
दिल अटका है तुम्हारा?
कभी पांव के
काले धागे के घेरे में
संजोई है
तुमने दुनिया अपनी,
कभी आंखो के
कजरे में क्या
जीवन सिमटा है तुम्हारा?-