बरामदे पर बड़ी देर से उस मकबूल चाँद को देख,
मैं बस इतना सोचती रही के,
क्या आज भी वो आया होगा?
वहीँ, जहाँ पिछले तीन हफ़्तों से,
हम जान कर या इत्तेफ़ाकन ही मुकाबिल हो रहे हैं!
क्या आज भी सीढ़ियों का आगाज करते हुए,
उसने मेरे ना होने पर अफ़सोस किया होगा?
शायद कॉफी पीते हुए,
मुझे सामने की टेबल पर ना पाकर,
उसने बेशक मेरी सखी को बेवजह ही रोक कर पूछा होगा!
आज आई नहीं वो?
वही, आपकी दोस्त है ना वो!
कुछ काम था उनसे,
ये कह उसने बात को वहीँ सम्भाला होगा! — % &बार बार मुड़ कर वो जो नई लड़की आई है,
कहीं वो तो नहीं?
लेकिन आवाज तो अलग लग रही है,
और मौसम भी तो बेईमान है,
क्या पता उसका गला ख़राब हो गया हो!!
ये सोच कर ख़ुद से ही बेहिसाब वो उलझा होगा!
बड़ी देर हो गई, आज उसकी हँसी से माहौल कुछ भीगा नहीं,
क्या बात है, कोई मसाइब तो नहीं?
बेवजह ही ख़ुद को कोस कर वो कुछ पल को ठहरा होगा!
आज मसला क्या हुआ, वो क्यूँ नहीं आई?
अब मैं भी उसका इन्तिज़ार नहीं करूंगा!!
ये सब सोच कर,
वो अपने ही आप से सौ दफ़ा रूठा होगा!
कुछ पल और रुक कर देखूँ,
क्या पता वो मुझे ही तलाशती हो?
इतनी ताबीर कर करके उसने ख़ुद को टटोला होगा! — % &आज तो फूलोँ और वादियों में जमाल भी नहीं,
उसके ना होने से सब कितना मुख्तलिफ़ है!!
क्या हक़ीक़त में वो आज आ नहीं पाई?
कुछ मसला रहा होगा!
कल सामने से टोक दूँगा उसे,
ख़ुद को इतना मनाकर वो वहाँ से रुख़सत हुआ होगा!
हाय! इस तसव्वुर में कितना बह गई हूँ मैं,
चंद मुलाक़ातों में उसके लिए इतना सब!!
क्यूँ, आख़िर क्यूँ सोच रही हूँ मैं?
मगर मुझे देख उसका तिफ़्ल हो जाना,
ये सब आम थोड़ी है!
और मैं आज वहाँ नहीं आई,
ये सब मानना उसके लिए यक़ीनन मुश्क़िल रहा होगा !— % &अगले दिन जब अपनी सखी से मैंने,
कल का मंज़र जानने की कोशिश करी!!
सुन, कल वो आए थे?
मुझे ढूँढ़ा!
पूछा था मेरे बारे में?
मेरी बेसब्री को देख उसने मुझे देख कर क्या कहा,
वो तो अब याद नहीं!!
मगर उसकी हँसी में वो तल्खी थी,
की बा-ख़ुदा मेरे ख्यालों का भ्रम टूट कर बिखर गया!!
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