यूँ तो ख़्याल ही थी कल तक मैं तिरी,
मुझे हक़ीक़त बनाने में इन्तेज़ार क्या है!
ग़ालिबन मिरे चर्चे हैं तिरे गलियारे दिल में,
अब लबों को क़ासिद बनाने में असरार क्या है!-
सुने है महताब के फ़साने कई, ज़रा ख़ुर्शीद की चमक पर तब्सिरा कीजे,
मसाइब तो तमाम हैं राहो में, अपनी कुर्बत से जरा क़रार मयस्सर कीजे!!
यूँ ही बस जाइए इन निगाहों मे, कुछ पल को थम जाइए,
कभी तो फ़राग़त मे, ये खुशनसीबी मुनासिब कीजे!!
गोया ठहरी है इक ओस, बहारों से छिटक कर,
बस उसी तरह ठहरकर, ये जीस्त मुकम्मल कीजे!!
ख़ुद को ख्वाहिशों में, उनका महबूब समझ रखा है,
ग़र हक़ीक़त में रकीब से मिल जाइए, तो क्या कीजे!!
जिसे रोज़ तराशा है, माज़ी में तन्हा ए-खयाल,
ग़र उनसे इमरोज़ में टकराईए, तो क्या कीजे!!
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अपनी खिलखिलाहट से मेरी ख़ामोशियों को बयान कर लेना,
जो मैं रूठ जाऊ तो मना लेने की कोशिशें तमाम कर लेना!
बड़ी बेईमान लगती है मुझे इन वादों की परछाई,
ग़र कर सको तो वादे मुक़म्मल सरेआम कर लेना!
मेरे नाम कोई शायरी, ख़त या चंद लफ़्ज़ क्या लिखो,
जो लिखो तो मेरे ख़ातिर एक दास्ताँ कर लेना!
यूँ तो सुनी सौ अर्जियां आशिकों की ज़ुबान से,
कर सको तो मेरे नाम पूरा आसमान कर लेना!
क्या करुँगी सहेज कर आशियाँ तेरे इन ख्वाबों का,
ग़र कर सको तो अदा रक़म सुकून-ए-मकान कर देना!
है बाकी मुझमे कई ख़्वाहिश बेसब्र सी कुछ आज भी,
दिल नादाँ से है लगाया तो बेसब्र हर अरमान कर लेना!
क्या कहूँ की क्या कशिश है तुमसे तन्हा-ए-ख्याल,
मैं मर जाऊँ तो अपने नाम ये फ़रमान कर लेना!
-
इक ओस ही तो है ये खुशियाँ,
ये महफ़िल,
ये चहचहाहट,
गुमसुम नज़ारे,
और
और सबसे हसीन तेरी खिलखिलाहट!!
— % &हाँ! इक ओस ही तो है,
जब छिटक कर उस मेघा से समेट लेता है यूँ ही उसे फूल कोई,
तो बेशुमार खुशियों की तरह कुछ इठलाते हुए अपनी मौजूदगी से वो सारी महफ़िल मे सादगी बिखेर जाती है! — % &
जो महफ़िल में ठहरे तमाम रक़ीबो की तरह कुछ यूँ ही बयां किए देते है अपनी प्रेमिका के किस्से,
कुछ इस कदर ही चहचहाकर पूरी होती है नाकाम ग़ज़लें, नज्म और ख्वाहिश! — % &और जब चर्चे मशहूर हो चले हो,
तो सहम जाती ही है,
वो नाजुक सी कली!
और शायद इसी घबराहट में,
पिघलने लगती है वो इठलाती ओस भी
चुपके से!
उन्हीं गुमनाम नजारों की तरह
जो कब गुम हो जाते हैं,
ख़बर ही नहीं होती!
— % &और फिर पिघलने लगती है ये ओस,
और पिघलकर,
मिल जाती है
मिट्टी के कुछ कणो में!
और बस रह जाती है उसकी सौंधी सी खुशबू!
ये खुशबू तेरी खिलखिलाहट की तरह ही तो है,
सबसे हसीन
सबसे कमाल! — % &सच में ये सब ओस ही तो है,
जो हर मौसम को गीला कर दे
अपनी अदाओं से मशहूर,
बिना कुछ किए,
बिना कुछ कहे,
खिलखिलाहट तेरी वो ओस ही तो है!! — % &-
बरामदे पर बड़ी देर से उस मकबूल चाँद को देख,
मैं बस इतना सोचती रही के,
क्या आज भी वो आया होगा?
वहीँ, जहाँ पिछले तीन हफ़्तों से,
हम जान कर या इत्तेफ़ाकन ही मुकाबिल हो रहे हैं!
क्या आज भी सीढ़ियों का आगाज करते हुए,
उसने मेरे ना होने पर अफ़सोस किया होगा?
शायद कॉफी पीते हुए,
मुझे सामने की टेबल पर ना पाकर,
उसने बेशक मेरी सखी को बेवजह ही रोक कर पूछा होगा!
आज आई नहीं वो?
वही, आपकी दोस्त है ना वो!
कुछ काम था उनसे,
ये कह उसने बात को वहीँ सम्भाला होगा! — % &बार बार मुड़ कर वो जो नई लड़की आई है,
कहीं वो तो नहीं?
लेकिन आवाज तो अलग लग रही है,
और मौसम भी तो बेईमान है,
क्या पता उसका गला ख़राब हो गया हो!!
ये सोच कर ख़ुद से ही बेहिसाब वो उलझा होगा!
बड़ी देर हो गई, आज उसकी हँसी से माहौल कुछ भीगा नहीं,
क्या बात है, कोई मसाइब तो नहीं?
बेवजह ही ख़ुद को कोस कर वो कुछ पल को ठहरा होगा!
आज मसला क्या हुआ, वो क्यूँ नहीं आई?
अब मैं भी उसका इन्तिज़ार नहीं करूंगा!!
ये सब सोच कर,
वो अपने ही आप से सौ दफ़ा रूठा होगा!
कुछ पल और रुक कर देखूँ,
क्या पता वो मुझे ही तलाशती हो?
इतनी ताबीर कर करके उसने ख़ुद को टटोला होगा! — % &आज तो फूलोँ और वादियों में जमाल भी नहीं,
उसके ना होने से सब कितना मुख्तलिफ़ है!!
क्या हक़ीक़त में वो आज आ नहीं पाई?
कुछ मसला रहा होगा!
कल सामने से टोक दूँगा उसे,
ख़ुद को इतना मनाकर वो वहाँ से रुख़सत हुआ होगा!
हाय! इस तसव्वुर में कितना बह गई हूँ मैं,
चंद मुलाक़ातों में उसके लिए इतना सब!!
क्यूँ, आख़िर क्यूँ सोच रही हूँ मैं?
मगर मुझे देख उसका तिफ़्ल हो जाना,
ये सब आम थोड़ी है!
और मैं आज वहाँ नहीं आई,
ये सब मानना उसके लिए यक़ीनन मुश्क़िल रहा होगा !— % &अगले दिन जब अपनी सखी से मैंने,
कल का मंज़र जानने की कोशिश करी!!
सुन, कल वो आए थे?
मुझे ढूँढ़ा!
पूछा था मेरे बारे में?
मेरी बेसब्री को देख उसने मुझे देख कर क्या कहा,
वो तो अब याद नहीं!!
मगर उसकी हँसी में वो तल्खी थी,
की बा-ख़ुदा मेरे ख्यालों का भ्रम टूट कर बिखर गया!!
— % &-