बाबा भोलेनाथ के विषपान पर लिखी गई मेरी अवधी कविता;
जरूर पढ़ें|-
या फिर तनहा रात गुज़ारूँ,
तुमसे बातें करते - करते,
तेरी ही तस्वीर उतारूँ,
शाम तुम्हारे साथ गुजारूँ,
या फिर तनहा रात गुज़ारूँ|-
उसने मुझे सज़ा दी है,
या कोई दवा दी है,
कहती है मेरे सामने,
बस यूँ ही खड़े रहो..|-
कल येक सम्मेलन मा गवा रहे,
मुनिहार तलक हम हुँआ रहे,
फिर निकल लिहा घर दूर रहा,
खोब मज़ा रही जब हुँआ रहे|-
वो इश्क़ की पर्याय है, कोई नही है सानी;
सबने उसकी बाते मानी, ज्यों पानी में पानी|-
गाँधी तुममें सत्य भरा था, हाड़-मांस तो सबमे है;
कितना हम अपनाते तुमको, जो पढ़ते कक्षा में हैं|
जयंती पर शत्-शत् नमन 🙏-
|| दोहे ||
भागदौड़ की ज़िंदगी, में फँसकर हैरान;
धर्म अर्थ औ' काम को, ढूँढ रहा इंसान |
मानव मोक्ष न चाहता, चाहे बस अमरत्व;
मृत्यु! अटल है, सत्य है, फिर भी खोता सत्व |-
इश्क़ की चादर, पुरानी हो गई है,
वो खुद में अपनी राजधानी हो गई है;
सोचता हूँ! सौंप दूँ! नेता के हाथों में,
अब वश में नहीं, सत्ता सयानी हो गई है|-