बुख़ार सा ही तो है ये इश्क़ भी,
कुछ दिन होकर उतर जाता है।।
//नासमझ-
10 SEP 2019 AT 15:00
क़िताबों के पन्नो पर ये जो शब्द यूँ ही उकेर दिए हैं,
बाद ज़माने के कई, कहानी बन बैठे हैं।।
// नासमझ-
4 JUL 2019 AT 11:34
इश्क़ के लिए जगह कहाँ से बनाऊं,
मकां में मेरे लिए ही जगह कम है।।
//नासमझ-
25 JUN 2019 AT 12:40
अगर मैं कहूँ की मेरे पास ख़ज़ाना है
तो मैं ग़लत नहीं हूँ,
संदूक भर के मैंने किस्से-कहानियां
बचपन से इक्कठी की हैं।।
//नासमझ-
19 SEP 2019 AT 18:22
वो घर कभी सुना नहीं होता,
जिस घर में बुज़ुर्गो का साया होता है,
छिप जाती हैं ख़ामोशियाँ भी कही कोने में,
बुज़ुर्गो के तज़ुर्बों में जहाँ समाया होता है।
//नासमझ-
24 OCT 2022 AT 13:01
23 OCT 2022 AT 0:17
इतनी जल्दी भी प्रोफेशनल
नही हुआ जाता
जितनी जल्दी
शाम से रात होने में वक्त लगता है-