आज का दिन भी समाप्त हुआ
उलझनों से बनती बिगड़ती मेरी ख्वाबों की डगर,
मुसाफ़िर बन भटकता मेरा मन दर बदर,
ना जाने किस ओर चला मेरी ज़िन्दगी का सफ़र
किसी खिताब में कैद है मेरे अलफाजों से बुना हुआ
वो खोया हुआ अंदाज़,
वो शिकायतों से भरा मेरा फ़रमान
कहीं गुम है वो शरारती इंसान.....
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