सुनो,
यह जो बिंदी है काली तुम्हारे माथे पर सुशोभित
लगती हो इसमें तुम बहुत खूबसूरत...,
हां,
खूबसूरत तो लगूंगी ही ना क्योंकि यह सिर्फ बिंदी नहीं,
है मेरी मां का प्यार, जो लगाती है वह माथे पर हर रोज़ मेरे,
मान इसे नज़र का काला टीका...!-
काली बिन्दी...
उसे मुझ पर काली बिन्दी अच्छी लगती थी,
कई दफ़ा कहा था उसने,
तुम साड़ी चाहे जो पहनो,
पर बिन्दी काली लगाया करो।
उसे हमेशा ये लगता रहता था कि,
काली बिन्दी मुझे बुरी नज़र से बचाएगी।
साड़ी फबती है मुझ पर ये पता था मुझे,
पर मुझे नज़र लगने की फ़िक्र उसे थी।
और यूँ प्यार दिखाते-दिखाते,
वो एक दिन मेरी ज़िंदगी से चला गया।
अब काली बिन्दी तो लगाती हूँ,
पर नज़र से बचने की लिए नहीं,
बल्कि उसकी नज़र में आने के लिए।-
वो कहता है सूट पहना करो
दुप्पटा सिर पर रखा करो
और मुझे बिना ख़ंजर के
घायल करना हो जान तो
माथे पर काली बिन्दी लगाया करो
-
ठहर जाती है हर नज़र तेरे " रुक्सार "पर आकर
तेरे मासूम चेहरे की बनावट में "कशिश" कुछ है|-
फर्क नहीं पड़ता कि
मैं तुमसे कितने दिनों बाद मिलूं
मैं तो तुम्हारी काली बिंदी से तुम्हें पहचान लूंगा
इसे हमेशा थोड़ा टेढ़ा ही लगाना
और
यूंही हमेशा अपने कटीले नैनों से तीर चलाना
बस, इन्हीं हरकतों से मैं सब कुछ जान लूंगा-
शॉक है मेरा माथे पर काली बिंदी लगाना
जब बोला था उन्होंने,बेहद पसंद है मुझे ये
तो अब मुझे और भी खूबसूरत लगती है
क्योंकि ये बिंदी अब उनके नाम की लगती है
-
Solah Shrungar Nahi
Meri Jaan Ko Bas,
Ek Kaali Bindi Aur Jhumka Pasand Hai..!!-