आज है ज़मीर बदमस्त थोड़ा थोड़ा,
हर तरफ़ तेरा ही सराब थोड़ा थोड़ा,
बार ए हिज्र अब बढ़ता है हर रोज़,
सुकूं है इंतज़ार घटता है थोड़ा थोड़ा,— % &तेरी गजलों का हर शेर, है जैसे बोसा,
महकते है होंठो पे , तेरे हर्फ थोड़ा थोड़ा,
नामंजूर है मुझे फुर्सत तेरे खयाल से,
मंजूर है होना तुमसे खलल थोड़ा थोड़ा,— % &पन्नों से हटी है ये गर्द रखकर एक शर्त,
महफूज़ होना है दफना दो थोड़ा थोड़ा,
फ़िक्र कर तुम्हारी मैं जता चुका हूं हक,
आता नही मुझको इज़हार थोड़ा थोड़ा।— % &-
जिया जाए सितम को या बेजान रहा जाए,
नजरंदाज करने से अच्छा अंजान रहा जाए ,
मत पूछो बारे में उसके मसअले दीदार के,
जन्नत हासिल कर कबतक रूहान रहा जाए,— % &मुकम्मल होने को वस्ल देर है क्या बहोत?
बताओ कब तक झूठा बेईमान रहा जाए?
सूखे गमले पूछे तिरी खबर मुझसे तब,
कैसे मुकर के खुदसे बेजुबान रहा जाए?— % &जानां, नहीं है आसां यूं दरख्त हो जाना,
हो कर जाहिद फिज़ा में बेमन रहा जाए,
अब इस मकां में तिरि ये यादों के साथ,
रहे जान कर या इत्तिफाकन रहा जाए।— % &-
ढूंढेंगे...
हम तो
गम को
खुदा की तरह ,
तुम्हे खौफ है?
बड़े मुल्हिद हो !
/ प्रेरक — % &बेशक ख्याल ए इज़हार सुर्ख रु बहोत है,
पर ये कमीज़ ए एहसास पे रफू बहोत है,
एक तो है दो पल की वो भी गुज़रे ऐसे,
जिंदगी में बस जुस्तजू ए सुकूं बहोत है,
आख़िर है गर हसरतों पर अजल भारी,
तो इस मुस्कराहट की बस आबरू बहोत है।— % &-
सिर्फ़ तसव्वुर की नहीं हम गम की भी बात करते हैं,
गोया हो अमावस फिर भी हम चांद की बात करते है,
काश होती ये सिर्फ़ बाते ही तो बात भी अलग होती,
तुम्हे पता है...खैर छोड़ो हम शुरू से बात करते है,— % &बड़ी कश्मकश से बचते तुम्हारे नाम तक आया हु,
मेरे इंतजार के लम्हे तेरी इजाज़त की बात करते है ,
मैं बात घुमाऊ बोल न पाऊं ये तो आदत है पुरानी,
पर हर हर्फ ए एहसास तुम्हारी सीधी बात करते है,
— % &कहते है ईश्क कभी दूरियों से मुकम्मल नहीं हुआ,
अरे लोग तो है ही बातूनी कुछ भी बात करते है,
गर है ये गलतफहमी तो हां गलतियां करता हु मैं,
तजुर्बे ए गवाह ये गलती दोहराने की बात करते है।
— % &-
जैसे रस्म-ओ-रिवाज में तुम शामिल हो, आम बात है ना!
अब तुम्हारा यूं हरदम याद आना बोलो, आम बात है ना!— % &यूं तो अब तलक बदले कई शख्स इन शहरों की तरह,
तुम्हारा वहीं गांव सा बना रहना बोलो, आम बात है ना!
— % &मेरा कहना बेशक कम हुआ पर जताना अभी बाक़ी है,
हां तुम्हारी तस्वीरों को चूमना ! क्या! , आम बात है ना!— % &खैर... पागल तो ये ज़माना है जो मुझसे नहीं जलता,
तुम सा महबूब पा कर यूं इतराना तो, आम बात है ना।— % &-