हां मैं बेटी हूँ इसलिये मैं पराई हूँ,
ना जाने क्यों इस धरती पर बनाई हूँ,
दुर्गा का रूप हूँ काली का रूप हूँ,
मानो तो मैं देवी स्वरूप हूँ,
फिर भी हवस के पुजारियों की मैं भूख हूँ,
बंदिशों मैं पल कर भी मैं बेचारी हूँ,
हां मैं एक अबला नारी हूँ।।
हर एक ने बेटियों पर उंगली उठाई है,
नन्ही-नन्ही परियों पर भी अपनी हवस दिखाई है,
फिर भी इंसाफ की ना कोई गुंजाइश है,
क्यों उन हवस के भेड़ियो को सजा नहीं मिल पाई है,
क्यों हर बार बेटियों की बलि चढ़ाई है,
क्या बेटियां इस लिये खुदा ने बनाई है।।
क्यों बेटियां हर बार ठुकराई है,
क्यों बेटियों की ना हुई सुनवाई है,
क्यों बेटियों पर बंदिशें लगाई है,
क्यों बेटो को इज्जत करना नहीं सिखाई है,
क्यों बेटियां ही हर बार गुनहगार कहलाई है।।
हर एक बेटी अपने लिए इंसाफ मांगती है,
अपनी आजादी का प्रमाण मांगती है,
उन हवस के दरिंदो को,
सजा ए मौत देने की इजाज़त चाहती है,
नारी घुट-घुट कर जीना नहीं,
आज़ादी से उड़ना चाहती है।।
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