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बे़असर ही रहीं सदा ये हरक़तें हमारी
और निगाहों से उनकी हम निकल भी न पाये
कुछ ख़ास नहीं अंजाम-ए-आश़िकी भी
दिवार-ए-दिल पे जमे मोम पिघल भी न पाये
काश उठा के ले आते हम उस बेवफ़ा को
पर वो पैमानों के तार उसके हिल भी न पाये
युं रह गयी दूर ही वो ख़्वाबों की जन्नत
जैसे धरा ये कहीं आसमा से मिल भी न पाये
सींचते तो रोज हैं ये मोहब़्बत की क्यारी
पर फिर से, गुलाब दिल के खिल भी न पाये
अब तक हैं बंहकती दर्द-ए-गम की बहारें
के उसके दिए ज़ख्मों को हम सिल भी न पाये
सागर से भी गहरे राज़-ए-पहली वफ़ा ये
मोहब्बत में भले हेम कोई हासिल भी न पाये-
सोंचते रह गये ये फ़साने ये बहाने ये तराने
युं मिली जो नज़र तुमसे तभी हम ये जाने
के सब ये सही थे बस हमीं तो थे अनज़ाने
बड़ी नादांनियां सी भरी थी हमारी उमरों में
उज़ाले वक्त में युं दूर हुई तभी हम पहचाने
कच्ची उमर के जाने पहचाने थे वो फस़ाने
जीते गये युं चुरा के तुझे हम इस ज़माने से
जीते जीते जिन्दगी को अब जा के युं जाने
हं बेकार में ही किये जाते थे वो सारे बहाने
गुनगुनाते रहे तुझे भूल के हम ये सारा जहां
जो खुद खायी ठोकर हम भी लगे समझाने
झूठे हैं वो सारे नगमें और झूठे वो सारे तराने-
और, हुई नहीं फिर, रूबरू वो जन्ऩत हमसे
इक तेरी यादों में ही, तन्हा दिल भी बह गया
तुम्हारे बिन अधूरा था मै, अधूरा ही रह गया-
मैनें तो उससे समुद्र की तरह इशक किया।
उसने तो मेरा किनारा ही लगा दिया।-
चल गुज़र जा, ऐ मेरी कश़्ती अभी
के बड़ी गर्दिश हुई है इस ज़माने में
चल गुज़र जा..
रास न आए अब और कठिनाई हमें
के अब सही न जाए ये रुसवाई हमें
भूल मै जाऊं, वो सभी सपने सुहाने
भूल मैं जाऊं वो हर इक कर्म पुराने
कहा न हमने फिर क्युं तु सताई हमें
युं राह चलते नज़ारों में भटकाई हमें
चल गुज़र जा...-
2
और, दिखती है जन्नत जैसी
ये दुनिया तेरे आस पास की
शिकवे, शिकायत सब मिटा
बातों में भी जोश भर देती हैं
हां सच में, इक नशा सा है
तेरी इन मासूम सी बाहों में
होते हैं जगे - जगे से अरमा
ये छूते ही बेहोश कर देती हैं-
बहुत कुछ सहना पड़ता है
हदपे कुछ कहना पड़ता है
युं रहते हैं सब सोए अरमा
देख जवानी बहना पड़ता है
ज़िन्दगी जो बस यही यारा
हर हाल में रहना पड़ता है
जब चलते न हैं बस हमारे
कुछ भी हो ढहना पड़ता है-