आँखों से जो निकले मोती उसमे मैं गुजरता हूँ
मोहब्बत की राह में सारे दर्द से अब मैं गुजरता हूँ
गज़ब का नदाज हैं उनके मोहल्ले का अब तो
उनकी चाह में रोज उन गलियों से मैं गुजरता हूँ
ख़ुद को देख के आज भी बहुत इतराती हैं वो
यही देख उसके आइने से अक्सर मैं गुजरता हूँ
मेरे हर पल में वो मौजूद हैं ये पता है मुझे भी
अब तो उसकी दिल की धड़कन मैं गुजरता हूँ
एक रिश्ते के लिए कई रिश्ते ताक पे रखे हैं मेने
अपने इश्क़ के लिए रोज शोलों से मैं गुजरता हूँ
अपनी कलम से HR Pg 60-
बेफ़िक्र हो के जो बिता वो बचपन था
गम से जो अनजान था वो बचपन था
कामकाज में उलझे रहते हैं हम अब
यारों में जो गुजरा वो तो बचपन था
जिम्मेदारी के आगे शौक कम हुए हैं
बेवक़्त कही भी घूमना वो बचपन था
देख दुनिया मैं झूठ साथ मे रखता हूँ
सच्चाई से याराना तो मेरा बचपन था
जिस से भी बोलते हैं अदब से बोलते हैं
अपनेपन की भाषा वाला तो बचपन था-
कुछ जज़्बात को अल्फाज़ दे,
कुछ गम को अब तू ख़ुशी दे,
बोल दे इश्क़ को आ रहा हूँ !
कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
आज मौसम का मिज़ाज सर्द बहुत हैं,
ये दिल मे अरमानों की आग बहुत हैं,
देख फ़ितरत दुनिया की मुस्कुरा रहा हूँ !
कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
चाहत अपनी रास न आई,
दिल मे अगल बेचैनी पाई,
उन्हें यादों में रख अब लिख रहा हूँ !
कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
~कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !-
दिल के दर्द की आवाज कलम हैं
हो रहे पाप का हिसाब कलम हैं
मुझ से ना पुछो रात का आलम
तन्हाई से रूबरू होती कलम हैं
इश्क़ के सागर में नाव डूब रही थी मेरी
तभी पतवार बन के सँवारे वो कलम हैं
मोहब्बत की दास्तां हम पे भी बीती थी
उन्हें जो अल्फाज़ उतारे वो कलम हैं
जिंदगी से हारने की बात क्या की मैंने
जीने का सलीका बताये वो कलम हैं-
बारिश आते ही बंजर ज़मीन मुस्कुराती हैं
जैसे उसे देख अपनी जिंदगी मुस्कुराती हैं
प्यार के कहानी क़िस्से बहुत सुने हैं मैंने भी
उसे खुद में उतारा तो मुसीबत मुस्कुराती हैं
नहीं दे पाता किसी चेहरे को अब मैं इजाज़त
अपनी मोहब्बत तो उसके चेहरे से मुस्कुराती हैं
क्या पता था मुझे ये हुनर भी हैं उसमें यारों
मेरे दिल के साथ खेल अब रोज मुस्कुराती हैं
अपनी कला देख अब कई लोग सदमे में हैं
ये ही बेचैनी देख अपनी कलम मुस्कुराती हैं
अपनी कलम से HR B1 Pg 63-
शोखे-तुंद-ख़ू के जैसा था इश्क़
मिठे हमसुख़न सा ही था इश्क़
यू तो हर बात में वो अपने थे
पैराहन पहन चुका हैं ये इश्क़
एक दूसरे की जुस्तजू लगी थी
बहिश्त जैसा ही था हमारा इश्क़
दखे फ़ितरत हमें भी ख़स्तगी थी
जंजीरों जो दम तोड़ दे वो इश्क़
ऊपर अज़ीज़ थी हमें वो ज़नाब
तिश्ना-लब के लिए अमृत हैं इश्क़-
दिले समंदर में अभी बहुत ही गहराई हैं
उनकी आँखों मे आज भी नमी गहराई हैं
हर मोड़ पे चलु तेरे साथ ये जरूरी तो नहीं
इश्क़ पे आज फिर से मजबूरी गहराई हैं
देख के खुद को आज भी सहम गई है वो
चेहरे पे उसके फिर अपनी मोहब्बत गहराई हैं
कर दु बंद लिखना ये मुकिन नहीं हैं यारों
अब जा के तो मोहब्बत में इबादत गहराई हैं
नहीं समझ पाओगें कभी मेरी सख्शियत क्या हैं
अब तो लोगो की फितरत देख सोच गहराई हैं
अपनी कलम से HR B1 Pg 64-
मेरे दिल की धड़कन धड़कने की वजह तुम हो
हर रात जाग कर शेर लिख़ने की वजह तुम हो
मायूस दिल और चेहरे पे हँसी की वजह तुम हो
अपने आप मे जीना जिंदिगी की वजह तुम हो
दिल पे लगी गेहरी चोट की वजह तुम हो
मेरे हर घाव पे मरहम की वजह तुम हो
चाँदनी रातो से मोहब्बत करने की वजह तुम हो
बीते हसीन पल को याद करने की वजह तुम हो
जिसे देख के नाच उठे जिंदिगी वो वजह तुम हो
मेरी हर गज़ल के जज़्बातों की वजह तुम हो
अपनी कलम से HR B1 Pg 53-
जज़्बात को अल्फाज़ में बया करता हूँ
मैं हमेशा मोहब्बत से इबादत करता हूँ
सर हो हमेशा मेरी जरूरी तो नहीं यारों
मैं हार का भी जशन बनाया करता हूँ
जितना समझोगे उतना उलझ जाओगे
मैं तो जिंदगी की मौज पे इश्क़ करता हूँ
चाँद सितारे सब फ़िके नजर आते हैं
मैं तो अब घताओ से हिसाब करता हूँ
खत्म हो जाये काफ़िला ये मुमकिन नहीं
मैं अकेले में महफ़िल सजाया करता हूँ-
तेरी जुस्तजू में रोज उलझता हूँ
मैं नींद और ख्वाब में उलझता हूँ
देख वक़्त का सितम डर गया
मैं खुद से ही अब उलझता हूँ
क़त्अ करे इस दर्द को हम भी
सहर तेरी तस्वीर से उलझता हूँ
तअल्लुक़ नहीं रखता किसी से अब
मैं खुद आज महफ़िल से उलझता हूँ
अदावत हो या इश्क़ निभा जाता हूँ
मैं जिंदगी में हर गमों से उलझता हूँ-