बे़असर ही रहीं सदा ये हरक़तें हमारी
और निगाहों से उनकी हम निकल भी न पाये
कुछ ख़ास नहीं अंजाम-ए-आश़िकी भी
दिवार-ए-दिल पे जमे मोम पिघल भी न पाये
काश उठा के ले आते हम उस बेवफ़ा को
पर वो पैमानों के तार उसके हिल भी न पाये
युं रह गयी दूर ही वो ख़्वाबों की जन्नत
जैसे धरा ये कहीं आसमा से मिल भी न पाये
सींचते तो रोज हैं ये मोहब़्बत की क्यारी
पर फिर से, गुलाब दिल के खिल भी न पाये
अब तक हैं बंहकती दर्द-ए-गम की बहारें
के उसके दिए ज़ख्मों को हम सिल भी न पाये
सागर से भी गहरे राज़-ए-पहली वफ़ा ये
मोहब्बत में भले हेम कोई हासिल भी न पाये-
मेरा जीना वे मरना दुश्वार हो गया
मुझे इक बेवफा से, प्यार हो गया
मेरा जीना वे मरना...
न समझती हैं रातें, वो मेरी कभी
न समझता है दिन वो कैसा हंसी
तड़पना सुबह शाम यार हो गया
मेरा जीना वे मरना...
क्युं बिन सोंचे समझे उसको ऐसे
ना जानूं ना समझूं क्युं आखिर ये
मुझसे ही पहले क्युं इजहार हो गया
मेरा जीना वे मरना...
ऐसा भी क्या दिखा निगाहों को मेरी
क्या अहसास हुआ इस दिल को मेरे
जो वो ही जिंदगी बेशुमार हो गया
मेरा जीना वे मरना...-
ऐ ख़ुदा उस बेक़दर को मेरी मोहब्बत का अंदाजा हो जाए
जितना दर्द मुझे हो रहा है काश उसे इससे ज्यादा हो जाए
रह न सके वो बेरहम किसी भीड़ में ना ही तन्हाई में कभी
कुछ इस क़दर ये बेक़रारी उसकी बेचैनी बेइरादा हो जाए
न जी सके न ही मर सके, रहे वो उलझन में मेरी ही तरह
मिले ना प्रत्युत्तर कभी वो भी सवालों का अमादा हो जाए-
स्वर्ग हो या नरक....
स्वर्ग हो या नरक, जमीं हो या फिर आसमां
तुझसे ही जीत सारी, और तुझसे ही हार माँ
जिंदगी हो या मौत, वो मंजिल हो या कारवां
सबसे छीन कर खुशियां, देता तेरा दुलार माँ
देखे बहुतेरे ख़्वाब, इन सोती जगती आंखों ने
मिली बहुत मंजिलें, हासिल भी कई हजार माँ
सब है ठीक, युं तो जी रहे हम खुशी खुशी पर
कहीं नहीं सुख, जैसा तेरे पहलू में बेशुमार माँ
खो जाता अक्सर मन, उन बचपन की यादों में
रोना लड़ना, जिद करना, उस पर वो प्यार माँ
मिले बड़े पर तेरे सिवा, कोई ना जो माफ़ करे
हकीकत कदमों तले तेरे, सुख सारा संसार माँ-
सोचता हूं कि लोग इतने खुश कैसे रहते हैं
आखों पे परदे लगा के ये हुश्न कैसे रहते हैं
होती न जाहिर कभी जद्दोजहद जिस्म की
लुटाके आबरू फिर वो बेबस कैसे रहते हैं
छुपतीं नहीं फिर भी छुपा लेते हैं हकीकतें
बदनाम होकर वो नामपरस्त कैसे रहते हैं
हेम सहे जफाएं लाख और गमकशी ऐसी
मगर वो राज़-ए-दिल बेशक कैसे रहते हैं-
रह - रह के बेमुरव्वत, वह अब तलक हमें डराते रहे
फिर भी न माने आखिर कसमे वफ़ा हम निभाते रहे
बिखर गई हर इक आस, बेरहम जुदाई की चोट पर
वो नहीं तो उनकी यादों से ही दिल को समझाते रहे-
अंधे को अंधा, बहरे को बहरा, कभी कहा नहीं जाता
आना अकेले जाना अकेले पर अकेले रहा नहीं जाता
तोड़ दो क्युं न हदें तमाम, फना कर दो भले जान भी
कुछ भी करो हरजाई को कभी सच्चा प्यार नहीं भाता
फैंसला नहीं हुआ, कभी यहां पे रात और दिन का भी
तभी तो रात को सूरज और दिन को चांद नहीं सुहाता-
इक हंसी ख्वाब बनके मुश्कुराना उम्रभर
अंधरुनी खुशी बनके ठहर जाना उम्रभर
बदलेंगे जमाने तो बदल जायेंगे ये रंगरूप
कोई न जुदा होंगे, मगर तुम इसी रूप में
प्यासी आंखों को मेरी नज़र आना उम्रभर
होंगे कहीं हम, कुछ अपनों के साए होंगे
कभी खुशी, तो कभी गम भी सताए होंगे
जैसे भी होंगे कल, हालात हमारे ऐ दिल
संग धड़कनों के मेरी धड़क जाना उम्रभर
न तो ये गिले और न ही ये शिकवे रहेंगे
कल ये दिन, बनके यादों में सपने रहेंगे
भूल जाओ तुम शायद याद भी न करो
शिकस्त ही सही इन यादों की ऐ दिल्लगी
पररूह बनकर तुम, संग रह जाना उम्रभर-
मेरी सोच
किसी को अच्छी लगती है तो किसी को ख़राब
पर सोच मेरी हमेशा सही व सटीक होती है
बस चूक तो वहां हो जाती है
जब दूसरों के बहकावे में आ के मै ही इसका कहा नहीं मानता-
मुझको तू चाहिए, तेरा ये घर चाहिए;
सुख दुःख संग तेरे, तेरे दर-बदर चाहिए ।
अब रह नहीं पाते कहीं भी तेरा बिना;
बचपना है मगर, तू ही हमसफ़र चाहिए ।-