Mere jesa na sahi yakinan
mujhse tere liye koi behtar hoga
Jiska bhi tu naseeb hoga
Wo behad khushnaseeb hoga-
Wrote an extended sher to the ghazal
चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है,
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है।
- Hasrat Mohani
यूँ नहीं मिलता कभी दिल को सुकूं लेकिन, मेरे,
कुछ सवालों पे तेरा नज़रे झुकाना याद है।-
Ek misraa tha mera,
Baaki gazal tere naam ki
Guftagu me woh tera
nazme pironaa yaad hai
Chupke chupke raat din aansu bahana yaad hai.
Hum ko ab tak mausiqi ka har tarana
yaad hai-
Wrote couple of extensions to the iconic Ghazal by Hasrat Mohani Sahab!
Chupke chupke raat din aansun bahaana yaad hai,
Humko ab tak aashiqui ka woh zamaana yaad hai...
- Hasrat Mohani
Har nazar se chhupke tere haath ka mujh tak safar,
Phir woh ungli se meri ungli dabaana yaad hai...
Yun nahi milta kabhi dil ko sukoon lekin, mere,
Kuchh savaalon pe tera nazarein jhukaana yaad hai...-
हमारा हाल उल्फ़त में सनम ऐसा भी होता है
ख़ुशी चहरे पे होती है न ग़म ऐसा भी होता है
कभी रफ़्तार इसकी तेज़ होती आँधियों से भी
कभी चलता नहीं मेरा क़लम ऐसा भी होता है
उन्हीं का माल उनको बाँट कर एज़ाज़ पाते हैं
ग़रीबों पर अमीरों का करम ऐसा भी होता है
ख़ुदा देता है बन्दे को ज़रूरत के मुताबिक़ ही
मगर भरता नहीं उसका शिकम ऐसा भी होता है
'असर' मुहतात रहने की बहुत कोशिश तो करता हूँ
भटक जाते हैं फिर भी ये क़दम ऐसा भी होता है-
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती..
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं..!!
--- हसरत मोहानी
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भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़्साने
शराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं
- हसरत मोहानी-
Wo chup ho gaye mujh se kya kehte kehte,
ki dil rah gaya muddaa kehte kehte...
Mera ishq bhi khud-gharaz ho chala hai,
Tere husn ko bewafa kehte kehte...
- Hasrat Mohani
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Nahi aati to yaad unki maheeno tak nahi aati...
Magar jab yaad aate hain to aksar yaad aate hain!!!
Hasrat Mohani-
यूँ तो किये हैं दोस्तो हमने जतन तमाम
जलता है उसकी याद में फिर भी बदन तमाम
तक़्सीम के वो ख़्वाब कभी देखते नहीं
प्यारा हो जिनको जान से अपना चमन तमाम
साक़ी ने दे के अपनी क़सम मय पिलाई है
करते हैं पेश उज़्र ये पैमाँ शिकन तमाम
शरमा रहे हो दोस्तो तुम किसलिए यहाँ
हम्माम में तो होते हैं बे-पैरहन तमाम
करता हूँ मैं क़ुबूल ये उस्ताद-ए-मुहतरम
सीखा है आप ही की बदौलत सुख़न तमाम
कुछ तो 'असर' है उसके उफनते शबाब में
वरना यूँ ताकते नहीं तिश्ना-दहन तमाम-