मैं कुछ समय से इस विषय में विचार करता आ रहा हूं माँ,
पिछले कुछ दिनों से लाखों जाने गई,
उन पांडवों ने कृष्ण साथ इस रणभूमि में कायरता का ही प्रदर्शन किया है,
पितामह को कपट से घायल किया,
आचार्य द्रोण को छल से मारा,
मेरे मित्र कर्ण को कपट से मारा,
और मैं भी उनकी कायरता का ही शिकार रहा माँ, "
अब मुझे जाना होगा माँ,"
असुरों के प्रति विष्णु की घृणा ने सब कुछ नष्ट कर दिया,
हस्तिनापुर तहस-नहस पड़ा है,
मैं अब भी बुझे अंगारे देख सकता हूं,
दुकाने, घर, प्रसाद, पुरुष, स्त्रियों व शिशु सबकुछ जलकर राख हो गया है, माँ।...
अग्नि की लपटों से घिरे इस हस्तिनापुर को अपनी रक्षा स्वयं करने दो,
मैं जो भी था आज उससे तो बहुत दूर निकल आया हूं
मैं अब शांति से मरना चाहता हूं माँ
मैं यहां से चले जाना चाहता हूं।....
-