QUOTES ON #GLAL

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10 OCT 2022 AT 21:51

राम
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नारायण नर बनकर आए।
राम रूप धर तनय कहाए।।
कौशल्या मातु अंक पाई।
दशरथ कंध करी झूलाई।।

भरत शत्रुघन लक्ष्मण भाई।
संग सभी के शान बढ़ाई।।
राजदुलारे अवध सुहाए।
बाल रूप में सब मन भाए।।

गुरु वशिष्ठ से शिक्षा पाई।
कुल का मान हुए रघुराई।।
संत साथ पाई संताई।
पड़ने दी न दोष की झाँई।।

पाई सीता ने तरुणाई।
जनकपुरी तब गई सजाई।।
भूप जनक ने भूप सभा में।
करी घोषणा धनुष प्रभा में।।

वर ने सीता जोर दिखाओ।
प्रत्यंचा शिव धनुष चढ़ाओ।।
भूप दिखायेगा जो करके।
ले जायेगा वह सिय वरके।।
... लगातार

✍️ गोपाल 'जिगर'

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7 JUN 2022 AT 16:06

सजल
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बह गई बदन से साँसें पानी सी।
रह गई प्यास अधूरी कहानी सी।।

उलझनों को सुलझाते रहे पूरा।
फिर भी आती रही अनजानी सी।।

होश खोते रहे जोश ही जोश में।
सुलगी रह गई चाहें जवानी सी।।

दबी रह गई लगी आग सीने में।
गुजर गई जवानी लौ सहानी सी।

करते रहे हरदम कही अपनों की।
और बुनते गए उनको तानी सी।।

कहा अपने लिए कुछ करने को तो।
होती रही सदा आनाकानी सी।।

सुनी नहीं मन की सबने जीवन भर।
अंत समय हुई बड़ी अगवानी सी।।

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20 FEB 2022 AT 11:26

दिल पत्थर के हुए कि चली ऐसी हवा है
मिजाज कड़वे हुए बनी गालियाँ दवा है,
फजल पत्थरों की हो रही है इंसान पर
शैतानों ने किया रब राम को अगवा है |

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23 AUG 2022 AT 12:08

वक़्त का माजरा
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मटरगश्ती का आलम बड़ा भरपूर था
चढ़कर शजर पर चाँद को देखते थे
ओढ़ कर कर शर्म को आईने देखते थे

फिर न जाने कैसे वक़्त बदला, कैसे हम बदले
बदल गया आलम, बदल गए जमाने
अब सिर्फ़ वो दौर क्या
ज़िंदगी ही बदल गई

बदले पल पल तो
बदल गया वक़्त,
वक़्त का ही ये सितम था
कि सब कुछ बदल गया,
पहनते थे जो घड़ी हम कभी
वक़्त के साथ वह घड़ी भी बदल गई
( Read Full In Caption )
✍️ गोपाल'सौम्य सरल'

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28 FEB 2022 AT 15:02



करना है मुझे
प्रेम को परिभाषित...

आधा अधुरा नहीं
बल्कि पूरा का पूरा
प्रेम के लिए लक्षित...

{ अनुशीर्षक में }

@ गोपाल 'साहिल'











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25 AUG 2022 AT 10:54


" एक क़तरा मोहब्बत का "
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रगों में बहता एक क़तरा मोहब्बत का अभी बाकी था
दिखना असर, खून के रिश्तों का अभी बाकी था

नाराज़ हो गए तो क्या, लड़-झगड़ गए तो क्या
रूठे हुए अपनों को, अपनेपन से मनाना अभी बाकी था

भले ही जख़्म ही जख़्म मिले हो सभी अपनों से
खून के रिश्तों को, प्रेम की थपकी से सहलाना अभी बाकी था

भले ही बात नहीं होती हो भूल से भी, दूर हुए अपनों से
पढ़कर नजरों को, दिल की बात बताना अभी बाकी था

चोट लगने पर अभी भी, दर्द बड़ा महसूस होता था
अंगुलियों से नाखूनों का दूर होना अभी बाकी था

बची हुई थी गैरत सभी में अभी भी मान सम्मान के लिए
रगों में दौड़ रहे खून का पानी होना अभी बाकी था

याद रह रह कर सबकी, अभी भी खूब आती थी
खून के रिश्तों को भूलना भुलाना अभी बाकी था

घर के आँगन में बैठकर, बात करने की चहक अभी भी याद है
मिलकर गले सबसे, दिलों का मिलना अभी बाकी था

जिंदादिली से रंज के लम्हों को, अफ़्जा में बदलना याद है
रंग दिखना खुशियों में खानदान का गुलाबी अभी बाकी था

रिश्ते जलती हुई लौ है, परवाना बनकर जलना अभी बाकी था
रगों में बहता एक क़तरा मोहब्बत का अभी बाकी था...

✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'

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14 SEP 2020 AT 16:08

~ आओ शब्दों को रंगीन बनाएं~
( हिंदी दिवस- परिवर्तन कविता )
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शब्दों में रंग होता है
जब आप इन्हें ह्रदय से बोलते हैं,
पर जब आप इनका अनुसरण
अपने हिसाब से करते हैं
इनका रंग फीका पड़ जाता है;
तो आइए रंग दे इन्हें
अपने ह्रदय की भावनाओं के स्पंदन से |

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14 SEP 2022 AT 14:05

हिंदी
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हिंदी है गर्व, हिंदी है गौरव।

भाषा है यह भारत माता से मिली
मिला गुरु से है इसको सौष्ठव
हिंदी है गर्व, हिंदी है गौरव।

लोरी सी गति है इसमें
विराम की यति है इसमें
ध्यान और एकाग्रता का वैभव है इसमें
और है इसमें संस्कृत, संस्कृति व सभ्यता का पल्लव
हिंदी है गर्व, हिंदी है गौरव।

माँ वागीश्वरी का ज्ञान यह देती है
शब्दों की गहराई से मन में भाव यह भर देती है
देवनागरी लिपि से विद्वान यह सबको कर देती है
जोत जलाकर यह शिक्षा की,
भस्म यह कर देती है अंधकार का रौरव
हिंदी है गर्व, हिंदी है गौरव।

नौ रस, पिंगल की वाणी है यह
सरगम सी मीठी मुख्य वाणी है यह
राजभाषा का गौरव पाया है इसने
जन जन की मातृभाषा करना है इसको
राष्ट्रभाषा का गौरव देना है इसको
भाषाओं में देना है इसको गर्व का गौरव
हिंदी है गर्व, हिंदी है गौरव।
✍️ गोपाल 'सौम्य सरल'





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2 OCT 2021 AT 23:25

व्यंग-

महापुरुषों का अवतार आधुनिक चाहिए
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लगता है अब न गाँधी चाहिए
और न ही अब शास्त्री चाहिए
जुबां पर हो महापुरुषों का नाम
और मन की बातें बड़ी अच्छी चाहिए,

और मन की बातें बड़ी अच्छी चाहिए
बात करने में बातें तो बड़ी ही चाहिए
क्योंकि बड़ी बातें करने वाले ही
दिमाग से सपाट जनता को सभी चाहिए,

दिमाग से सपाट जनता को सभी चाहिए
लाखों के सूट वाला बड़ा आदमी चाहिए
रौब से तनकर इतराकर चलने वाला
महापुरुषों का अवतार आधुनिक ही चाहिए |

~ गोपाल 'साहिल'

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25 JUN 2021 AT 14:32

आरजू है मिरा घर हो' जैसे जिगर
रह सके राम-रब-आदमी सब इधर

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