बह चली ग़ज़ले-ग़ज़ब, ऐ! हवाओं गौर हो।
बढ़ रहा शाइर का कद, बादशाहों गौर हो॥
बक रहा हूँ क्या ही मैं, ना है सुध ना है खबर,
जिसने सुना ना ठीक है, जिसने सुना हो गौर हो॥
समझो थोड़ी सी मुझे, नापसंद ख़लवत है ये,
धूं किया लो अपना घर, सब निगाहों गौर हो॥
दो कदम का है सफर उसमें अब रूठें ही क्या,
जो हुआ सो हो गया, अब फिर ना हो गौर हो॥
होंगे सारे सब सुखनवर, हाँ मगर मैं हूँ नहीं,
इल्तिजा है मेरा मुझको, कद अता हो गौर हो॥
कहते हैं मैं हूँ 'ग़ज़ब', हूँ 'बेहया', हूँ 'बेअदब',
मैं जो हूँ , वो मैं ही हूँ, आप क्या हो गौर हो...
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