QUOTES ON #GHAZALEGAZAB

#ghazalegazab quotes

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2 MAY 2017 AT 11:28

फिर आज फूट फूट कर रोना चाहता हूँ,
गले लगा ले 'माँ', गोद में सोना चाहता हूँ,

के बहुत देख लिए ये मेले सब घूम घूम कर,
बस तू लोरी सुना दे, सपनों में खोना चाहता हूँ।

'माँ' नहीं है हिम्मत कि अब जज़्बातों से खेलूँ,
तू रोटी कब बनाएगी, मैं आटे का खिलौना चाहता हूँ।

'माँ' जब कोने में रूठ बैठता, तू हर बार मनाती थी,
तू आए मनाने जहाँ, फिर वो कोना चाहता हूं।

'ग़ज़ब', बड़ा हो गया हूँ आज दुनिया की ख़ातिर,
ज़रा नज़रें मिलाना 'माँ', मैं छोटा होना चाहता हूँ....

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9 SEP 2017 AT 0:25

जो भी कुछ ये हो रहा है, क्या कहें।
सारा सुकूँ सब खो रहा है, क्या कहें॥

मैं तो उसकी यादों में बैठा हूँ बाहर,
वो कौन अंदर सो रहा है, क्या कहें॥

औ' इब्तेदा-ए-इश्क़ का है ये असर,
वो हँसते हँसते रो रहा है, क्या कहें॥

वो क्यों बगैर अपना ग़रेबाँ झाँके ही,
ग़ैरों के दामन धो रहा है, क्या कहें॥

पैरों में छाले हैं फिर भी क्यों 'ग़ज़ब',
तू खुद ही कांटे बो रहा है, क्या कहें॥

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15 JUL 2017 AT 0:58

बिन बदरा बिजली गिराया मत करो।
तुम बेपर्दा ज़माने में आया मत करो॥

मोम हो जाता है ये फ़ौलाद पिघलकर,
समझो! दांतों में होंठ दबाया मत करो॥

फिर उसी कहानी का फिर वही किस्सा,
इस कदर तुम मुझे दोहराया मत करो॥

सोता नहीं! मैं उस से मिलने जाता हूँ,
आंख लग जाए तो उठाया मत करो॥

अरे आसाँ नहीं होता खुदको सम्भालना,
सर-ए-बाज़ार मुझको रिझाया मत करो॥

मानो खंजर से चलते हों दिल पर मेरे,
ज़ुल्फ़ों में अंगुलियां घुमाया मत करो॥

तुम्हारा 'ग़ज़ब', तुम्हारा, सिर्फ तुम्हारा है,
तुम सबको मेरा नाम बताया मत करो...

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27 JUN 2017 AT 0:44

वस्ल की जब रात होगी, क्या करोगी।
औ' याद मेरी साथ होगी, क्या करोगी॥

जब पढ़ेगा मेरा शेर आशिक तुम्हारा,
हमसे ही मुलाक़ात होगी, क्या करोगी॥

मेरे जनाज़े का बुलावा पाओगी तब,
दर पे जब बारात होगी, क्या करोगी॥

तीन मौसम याद करना मतही मुझको,
जब मगर बरसात होगी, क्या करोगी॥

औरों को कह दोगी कि मैं अब नहीं हूँ
जब आईने से बात होगी, क्या करोगी...

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2 JUL 2017 AT 1:08

हम भी आज उतरकर देखें।
गहरा है क्या समंदर देखें॥

बर्बाद होकर आबाद किया,
इस दिल ने कई बंजर देखे॥

आप गुलदस्ता लेने से पहले,
टटोलकर ज़रा खंजर देखें॥

जो चाहिए फूलों का बिस्तर,
काँटों की राह चलकर देखें॥

मैं लाख बुरा हूँ मानता हूँ,
आप अपने भी अंदर देखें॥

जो कहते हैं मैं रोता नहीं,
तकिया मेरा आकर देखें॥

कलम को क्या हासिल है
चल 'गज़ब' मरकर देखें...

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2 SEP 2017 AT 0:11

सिर खपाना दुनिया भर से जब था काफ़ी हो गया।
डाला बिस्तर, ओढ़ी चादर, आंखें मींची, सो गया॥

थक गया था चलते चलते खोज में मैं खुद की ही,
जब सफर में पाई ख़लवत, बस उसी का हो गया॥

मौत आनी थी मुझे के और फिर उनको मिली,
या नसीबा! तू मिरा था, तू भी उनका हो गया॥

पत्थरों की चोट खाकर जो न रत्ती भर हिला,
क्यों गुलों से जब भिड़ा तो फूट कर वो रो गया॥

या 'गज़ब'! सर दर्दी मैंने पाली थी वो जो मुहब्बत,
जाने क्या पाने की धुन में, जाने क्या क्या खो गया...

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31 JUL 2017 AT 1:30

पय बरसता रहा रात भर।
दिल तरसता रहा रात भर॥

चुप रहा और यूँ रो लिया,
उसको लिखता रहा रात भर॥

जाने किस कौर में मौत थी,
ज़हर चखता रहा रात भर॥

सर्द फिराक़ उसको जकड़े नहीं,
खुद दहकता रहा रात भर॥

मुन्तज़िर सिर्फ एक बोली को तेरी,
'ग़ज़ब' बिकता रहा रात भर...

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3 AUG 2017 AT 3:25

यूँ इश्क़ में और मेहनताना क्या होगा।
है जैसा उसका मुस्कुराना क्या होगा॥

ज़द मैं उसके हुस्न की यूँ सोचता हूँ,
उससे ज़्यादा कातिलाना क्या होगा॥

छेड़ो मुझको नाम से तुम उसके यारों,
फिर खूबसूरत और ताना क्या होगा॥

हो जुदा हाँ! हम तो बौराए फिरेंगे,
हाल तुम अपना बताना क्या होगा॥

तुम बाद मेरे कहना मैंने की मुहब्बत,
मौत को बेहतर बहाना क्या होगा॥

है 'ग़ज़ब' लिखता ग़ज़ल उसे देखकर तो
उससे ज़्यादा शायराना क्या होगा...

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9 AUG 2017 AT 0:52

ये सुब्ह ये परिन्दे हमें क्या ही जगाते।
रात बिता दी हमने मुहब्बत निभाते॥

तेरी हसीं, नादानी, वो चंचल सी बातें।
जल जाता ज़माना, हम क्या क्या सुनाते॥

ये जिस्म, ये रूह, ये दिल, ये जिगर,
सब खाक हो गया है, क्या क्या बचाते॥

मयखाना मायूस, मय ज़हर हो चली है
हमें चढ़ती नहीं जब तलक तुम न आते॥

भला तुमने पाली मुझसे कैसी ये नफ़रत,
के आईने से भी अब नज़र हो चुराते॥

अब भी उसी किनारे है किश्ती मिरी,
तुम दरिया में कंकड़ कभी मार जाते॥

'ग़ज़ब' रोकता न तुमको जाने से कभी मैं,
बस तुम में जो 'मैं' था अगर लौटा जाते...

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13 AUG 2017 AT 0:24

बह चली ग़ज़ले-ग़ज़ब, ऐ! हवाओं गौर हो।
बढ़ रहा शाइर का कद, बादशाहों गौर हो॥

बक रहा हूँ क्या ही मैं, ना है सुध ना है खबर,
जिसने सुना ना ठीक है, जिसने सुना हो गौर हो॥

समझो थोड़ी सी मुझे, नापसंद ख़लवत है ये,
धूं किया लो अपना घर, सब निगाहों गौर हो॥

दो कदम का है सफर उसमें अब रूठें ही क्या,
जो हुआ सो हो गया, अब फिर ना हो गौर हो॥

होंगे सारे सब सुखनवर, हाँ मगर मैं हूँ नहीं,
इल्तिजा है मेरा मुझको, कद अता हो गौर हो॥

कहते हैं मैं हूँ 'ग़ज़ब', हूँ 'बेहया', हूँ 'बेअदब',
मैं जो हूँ , वो मैं ही हूँ, आप क्या हो गौर हो...

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