भयावह मकड़ी!
मैं बिस्तर पर आराम कर रहा था
मस्ती में गाने सरेआम सुन रहा था
ख़बर ना थी मुझे आस पास की
मन ही मन मैं कई ख्वाब बुन रहा था
जब मैं था मस्ती में चूर
ऊर्जा थी मुझ में भरपूर
जैसे ही मकड़ी पीठ पर आई
खत्म हुआ चेहरे का नूर
फटाफट मैं बिस्तर से उतरा
दूर किया खुद से वो खतरा
तुरंत जा कर के स्नान किया
और ख़त्म किया मैंने सब लफड़ा
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