हो सके तो माफ करना, अभी खुद में खोई हूँ मैं,
सच्चाई आंखों की छुप जाती है चश्मे में,
यकीं करो रात भर रोई हूँ मैं..
यादों का समंदर है मेरे पास एक,
उसमें भी आज कल नदियाँ आ गिरती हैं,
उन नदियों में गोता लगाते गुज़री है, पिछली कई रातों से नहीं सोई हूँ मैं,
दिखती नहीं आंखें, झुका लेती हूं अक्सर,
यकीं करो रात भर रोई हूँ मैं..
तुमपे यकीं बेइंतहां था, धोखे की कभी गुंज़ाइश न रखी,
पता था मिल ही जाओगे एक दिन, इसलिए पहले से कोई ख्वाहिश न रखी,
आज एक बात बताऊं तुम्हें, तुम्हारी हर चीज़, तुम्हारे गम भी अब तक संजोयी हूँ मैं,
लगाती हूँ काजल, छुप जाती है श्रृंगार में आंखें,
पर यकीन मानो रात भर रोई हूँ मैं..
कब तक रहोगे यूँ ही आंखों में मेरी, कभी तो किसी और को भी इनमें जगह देने दो,
क्यों इतना बेबस कर रहे हो, अब तो दूर हो जाओ, मुझे फिर से जी लेने दो,
लो फिर आ गए मेहमान मेरी आँखों के, ये क्यों बहते हैं अक्सर मेरी आँखों से,
नहीं, मत देखो मेरी इन सूजी आंखों को,
यकीं करो 'सिर्फ' रात भर ही रोई हूँ मैं..!!
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