रहबर हूं दर पर तेरे,
कोई आतिश तो करदे,
और तमन्ना है फना होने की, तुझमें ए खुदा,
तू छू कर हमें, अपना हमनशीन कर ले!-
मैं मोहब्बत लिखुं या इबादत लिख दूं,
खुशियां लिखुं या सलामत लिख दूं,
या पैगाम लिख दूं उस बेजुबां के लिए,
की मसीहा समझा था जिसे उसने,
वो आदमी हैवान हो गया है,
और इंसान न रहा अब वो शैतान हो गया है!-
खामोशियों में आवाज़ सी है,
सुकून तो नहीं,
तबियत कुछ नसाज़ सी है,
एक ख़लिश है,
ज़हन मे हमारे,
हाँ हम तो हैं तन्हा,
क्या वो भी उदास सी है?-
ग़म नहीं तेरे बेपरवाह मिजाज़ का,
अफ़सोस है तेरे नासमझ होने का,
मुहब्बत को सौदा समझने वाले,
ग़म बिल्कुल नहीं है तुझे खोने का!-
चाहतों की चाह थी उनसे,
और नफरतों के किस्सों से मशहूर थे हम,
मुकम्मल वफ़ा की उम्मीद रखते थे उनसे,
बेवफ़ा मिजाज़ से मशहूर थे हम,
और वो समझते थे परवाना, झोंखा हमे हवाओं का,
दरअसल शहेलियों मे उनकी मशहूर थे हम,
वो इस बात को समझते की इश्क़ है महज़ दिल्लगी नहीं उनसे,
पर मुसाफ़िर थे आगे बढ़ जाने को मशहूर थे हम!-
आरज़ू , इल्तेज़ा या गुज़ारिश करूं,
गुजरते लम्हों से शिफारिश करूं,
पैगाम दूं इन फिजाओं से,
या लिख दूं कुछ तुम सा!
उस फलक पर तारों की स्याही से।
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चाँद तारों का क्या ज़िक्र करूं,
एक सपना सा लगता है,
वो अलग है कुछ खुद मे,
पर अपना सा लगता है!-
वक्त बदलता है तकदीरें बदल जाती है,
पैमाने वही होते हैं लोग बदल जाते हैं,
तुम आना बैठना उसी मैखाने में फिर एक दफा,
एक एक जाम दवा बनके उतरेगा ज़हन में।
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शोख अदाएं उनकी,
बेपनाह मोहब्बत निगाहों में,
लबों पर नाम बस हमारा था,
वक्त था, पैमाना था , इश्क़ था और सारा ज़माना,
कमबख्त वो दिल था उनका जो न हुआ हमारा!
इबादत तो की थी हमने बोहत,
सजदों में सिर भी झुकाया था,
हाथ थामे थे जिसके उम्र भर के लिए,
वो शक्श कायनात से भी प्यारा था,
और ये महज़ खयाल थे हमारे,
पत्थर था वो जिसे हमने खुदा बनाया था!-
यूं घबराना भी वाज़िब है,
हर अजनबी दोस्त भी नही होता,
वजह होती है हर बात की,
यूं हर बात बेवजह भी नहीं होती!-