|| तुम्हारी हूँ पर मैं न हारी हूँ ||
हाँ तुम ही मुझे इस घर मे लाये थे।
साथ मिलकर कुछ सपने सजाये थे।
आने वाले पल की तस्वीर में रंग भरे थे
कुछ लाल, पीले ,सुनहरे, कुछ हरे भी थे।
सभी रंग अब कहीं खोने लगे हैं।
अब बेरंग आंसू मेरे गालों को भिगोने लगे हैं।
कभी कभी कुछ रंग वापस लौट आते हैं,
जैसे लाल- नीले जब मेरे अंग चोट खाते हैं।
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