नि:शब्द हूं नि:स्वार्थ हूं
तेरे लिए तेरे साथ हूं-
राज लिखूँ या ख्वाब लिखूँ
आ आज तुझे आजाद लिखूँ
तुझे जीत लिखूँ तुझे हार लिखूँ
या मैं अब तेरा कुछ हाल लिखूँ
तेरी खुश रहने की चाह लिखूँ
या मैं अब तुझको बेबाक लिखूँ
तुझे देके बधाई क्या खास लिखूँ
तू जग जीते मैं इतनी सी ही चाह लिखूँ-
खुश रखने का वादा था तुमको
तुमको ही कहीं भुला दिया
माफ करना मेरे प्यारे दोस्त
तुमको ही मैंने रुला दिया-
तुम तो लगती हो मेरी प्यारी
मेरी दोस्त बड़ी हो न्यारी
सुनती रहती सबकी बात
करती अपने दिल की बात
Full poem in caption-
हम तो बस अल्फाजों को नाम दिया करते हैं
तुम्हारे सपनों को एक नई उड़ान दिया करते हैं-
बड़े दिनों बाद....
आज मैंने अपना स्कूल बैग फिर से लगाया है
नाकामयाबियों का बोझ बढ़ गया था
मैंने अपना सिलेबस( syllabus) नया बनाया है
कुछ नई किताबें उमंग की खरीदी है
कुछ पन्ने उदासी के फाड़ें है
बोझ बढ़ गया था नाकामयाबियों का जो,
मैने अपना नया सिलेबस लगाया है
जो खराब हो चुके थे हौसलों के पेन फेंक डाला उनको मैने
एक कच्ची कलम से किस्मत लिखी है अब मैने
मिटा दी सब लकीरें जो दूसरों ने बनाई थी मेरे लिए
मैने अपना रास्ता खुद बनाया है अपने लिए
हाँ अब बड़े दिनों बाद
मैने अपना सिलेबस लगाया है....
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वो राज भी बताएगा
हमराज भी दिखाएगा
तुम देना उसका साथ वहां
वो मंजिल फतह कर जाएगा-
वक्त तेरा भी आएगा इंतजार करना
लोग बदल जाएंगे पर तुम ना बदलना
कोई तुम्हें देखना चाहता है आसमान की उन बुलंदियों पर
तो कोई एक ठोकर मारकर छीनना चाहेगा तुमसे खुशियों का सवेरा-
खुशियों का कोई ठिकाना नहीं होता
अपनों का कोई फसाना नहीं होता
होते हैं जो साथ उन्हें खुश रखना सीखो
हर एक पल ये दोबारा नहीं होता
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