सुनों जब तक तुम्हें नही मिली प्रेम की अनुभूति शब्दों में बाधा करती थी अब ऐसा लगा की जैसे सभी अल्फ़ाज़ सच की ओर है और मेरी परिकल्पना जायज़ थी तुम हो मेरी परिकल्पना मेरे शब्दों का सुगार हो तुम... मेरी तलब मेरा एतबार हो हर वक़्त का इंतज़ार हो मेरे हमराज़ हो बादल में छुपता हुआ साज़ हो मेरी गीत संगीत ध्वनि मेरे हृदय की धड़कन में बजता रुनझुन हो तुम....💝
आज देखा उसे लगा कुछ छुपा रही है हृदय में कुछ तो है जो हृदय में ही दबा रही है मलिन सी धूमिल वातावरण अपने चहुदिशि बना रही है कठोर गंभीर खुद को और कोमलता से वंचित अपना चरित्र कुछ तो था जो उसे अंदर ही अंदर उसका कुछ छीन सा रहा था किरणें अब उसे आकुल व्याकुल कर देती है भूल जाना चाहती है वो ख़ुद को कहाँ कुछ पता नही हर वक्त एक अजब सी घनेरी बदरी उसको स्पर्श कर कुछ तो छीन लेना चाहती है उस स्नेहलता को क्या ग्लानि है जो अजब सा ही मनोभाव है ........
वो आँसु जो वह नीर की तरह बहाना चाहती है जी भर कर एकान्त में .........💧
दिल की बात यूँ कहने का हुनर रखता हूं !! एक तरफ़ा मंजिल एक तरफ़ा सफर रखता हूं !! और किसी की जान से मुझे क्या बास्ता !! मै तो शौकिया शीशी में ज़हर रखता हूं !!