आज जल्द ही महफ़िल उठा ली तुमने
कहकशा बुझ गए जो नज़रे हटा ली तूने
अभी जर्द हुआ था ये सफेद आसमां
मेरी वांह से जो वांह सटा ली तूने-
ये चहरे ये नज़ारे ये जवाँ रुत ये हवाएं
हम जाएं कहीं इनकी महक साथ तो होगी
यादों के चिराग़ों को जलाए हुए रखना
लम्बा है सफ़र इस में कहीं रात तो होगी
जज़्बात की दौलत ये ख़यालात की दौलत
कुछ पास न हो पास ये सौगात तो होगी-
कभी कभी मै सोचता हूं
ये जो ग़म है तुम्हारा
गर ये भी ना रहा
तो तुम्हारा क्या रह जायेगा
मेरे पास..........-
प्रेम कहानियाँ, प्रेम कविताएं लिखना
कोई पत्रकारिता नहीं जिसमे सिर्फ सच ही लिखा जाये-
कोई शख्स बड़ा ही संजीदा या बड़ा ही दिलचस्प या बड़ा ही खूबसूरत शख्शियत वाला कोई आला दर्जे का शायर जो रुमानियत घोल दे माहौल मे या फिर कोई ऐसा मीठी जुबान वाला जिसके बोले एक एक लफ्ज़ पे दिल फिसला जाये!
ये सारी खाशीयत लगती है ना किसी प्रेम कहानी के किरदार जैसी!
लेकिन अगर मै ये कहूं के ऐसी खूबियों के बावजूद किसी शख्स के साथ जुडी हो कब्ज की समस्या वो संडास मे बैठ कर अजीब अजीब मुँह बनता हो और दुनिया भर के जोर लगाता हो!
टूट गयी ना वो तस्वीर जो मैंने शुरू मे बनाई थी अब अचनाक तस्वीर हीरो से मसखरे की हो गयी!
कोई लेखक नहीं करता इस हद तक चित्रण!
मैंने मनोहर श्याम जोशी जी की कसप पढ़नी शुरू की!
वो पहुंचे है संडास तक उनकी इस कहानी मे बेबी नयका जब DD नायक को पहली बार देखती है तब वो अपने कुर्ते के दामन को ठोड़ी की निचे दबाये पाजामे के नाड़े की गांठ मे उलझा हुआ है!-