शिव से शिवा का प्रेम,
मिलन वैराग से है राग का।-
आखिरी उम्मीद तक उसे पुकारा मैंने,
खुद के वजूद को फिर ख़ुद ही संवारा मैंने।-
थोड़ी तसल्ली और हुई
थोड़ा सुकून और मिला,
वो जो हमेशा से मेरा था
अब मुझे बा-हक मिला।-
समझदारी, जिम्मेदारी, रिश्तेदारी और दुनियादारी के साथ जीते-जीते हम उस दौड़ और शोर का हिस्सा बन जाते हैं जहां जीवन तो होता है पर जीवंतता नही, गाथाएं तो सुनी जाती हैं पर व्यथाएं नही। फिर इन्ही अपेक्षा, उपेक्षा के शिकार होते-होते हम पहन ही लेते हैं, मुखौटे। एक, दो, दस या हजार...ये मुखौटे सब कुछ छिपा तो देते हैं पर नही मिटा पाते हैं हमारे अंतर्मन में चलते द्वंद को, पीड़ा को और शांति की तलाश में भटकते हुए अशांत मन को......जिन्दगी जिसे तलाशती है वो "शांति का एक क्षण भी अनंत शोर को शून्य कर सकने की सामर्थ्य रखता है।"
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मैं अंधेरों में टिमटिमाता सा कोई तारा नही हूंँ,
हो सुबह ये आस लेकर घूमता बेचारा नही हूंँ,
खुद को तराशा है मैंने, तूफानों में उतरकर,
तलाश में मदद की जीता कोई बंजारा नही हूंँ।
आंखों में सपने नए हैं, मन में दहकते अंगारे लिए हूंँ,
हांँ मैं गगन की उच्चता को शीश पर धारण किए हूं।-
ये महज़ एक app नही था,
लिखा जहां मैंने या तुमने।
हज़ारों बातें मन की अपने
रखी थीं यहां मन से सबने।
लेखक कहलाने के सपने
सच होते लगते थे अपने।
भाव, प्रभाव था गहरा इसका,
बना भांति-भांति का रिश्ता।
ये महज़ एक app नही था,
लिखा जहां मैंने या तुमने..।।-