पहाड़ पर सड़कों से ..
ज़रूरी हो तुम, जीवन मे
सड़क आराम किसका है,
इंसां का या पर्वत का..?
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काफिरों की तरह फिरते रहे जुनून में
कौन जाने इश्क़ मुकम्मल हो देहरादून में
तुम्हारी यादों का कारवां लेे चला हूं
साथ बिताए गए लम्हों का सिला हूं
कभी सपनों में तो कभी हकीकत में मिला होगा
तुम्हारी मेरी मुलाकातों का ये एक सिलसिला होगा
बातों में, जज्बातों में हर पल रहती हो
लबों से ना सही पर आंखो से कहती हो
ना जाने कितने इंतज़ार के बाद इकरार हो जाए
चांद से इस चेहरे का दिन में भी दीदार हो जाए
फिर भी
काफिरों सा फिरता रहूंगा इस जुनून में
कौन जाने इश्क़ मुकम्मल हो इस देहरादून में
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Wo shaant sa shehar tha
Ab wo waisa nahi raha,
Likhna chahta hoon main
Ke us shehar ne kya dekha kya saha,
Wo khuli hawayein,Pahadiyan
Ghir gayi hain ab Imarato me kahi,
Wo shaanti jo kitabo me thi
Ab nahi rahi.
Log aate hain jaate hain
Bheed kabhi kam nahi hoti,
Agar wo pehle wali shaanti
Lauta de koi
To wo Dehradoon ki Haseen Vaadiyan
Aaj yu na roti
Aur aankhe meri kuch yu hi
Namm na hoti.-
ज़िन्दगी ऐसे मुकाम पर आ के खड़ी है,
जहाँ ज़िन्दा रहना ही बड़ी कामयाबी है।
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