जो तेरे हक़ की बातों से तेरा दिल जीत लेते हैं
जरा देखो तो उनकी है वफ़ा किसके लिए आखिर-
Like dreams being spilt,
In the hues of night;
Vague yet familiar,
I hear your voice.
I wonder what they mean,
We laugh, then cry.
What if we fall,
After a successful flight?
Whether it's a that's it;
Or a long mile.
I wish some dreams;
Were affordable to buy.
Decoding dreams -
A myth; I deny.-
In the world filled with hackers...
She wishes to be the encrypted message only he can decode!!!-
ज्ञान के अथाह सागर जिन प्रभु की जय जयकार का डंका तीनों लोकों में गूँजता है , जो केवल मंगलों के सूचक हैं , जिन के शब्दकोश में असंभव शब्द ही नहीं है, अग्नि सा प्रताप जिनका और प्रचंड वायु सा वेग है, जहाँ पराजय का स्थान ही नहीं है और जिनकी भक्ति से सद्बुद्धि का विकास होता है , जिन के कान भगवान राम का यशगान श्रवण करते हैं जो अपने इष्ट की सेवा में तल्लीन जिन के विशाल कंधे प्राणीमात्र का भार वहन करने में समर्थ हैं, जहाँ शंका का स्थान ही नहीं है, जिन का यशोगान सारा जगत करता है.....!
मैं ऐसे परमपिता परमात्मा की शरण में हूँ
(हनुमान चालीसा)
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीश तिहूँ लोक उजागर, राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा , महावीर विक्रम बजरंगी,कुमति निवार सुमति के संगी, कंचन बरण विराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केशा हाथ वज्र और ध्वजा बिराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजे, शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन !!-
काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥॥
दोहा : ॥लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥
।।संकटमोचन हनुमानाष्टक।।
शरणागत भक्त केवल और केवल अपने शरणय को ही एक मात्र आधार मानता है, वह अपने ईष्ट से यही पूछता है - कि जब सभी कार्यों की सिद्धि आपके द्वारा ही संभव है तो फिर हे नाथ!! आप मेरी साधना का फल देने में क्यों विलंब कर रहे हैं, देवी देवताओं के तो क्या - यहाँ तक कि भगवान राम के भी सभी कार्य आप ही के द्वारा संभव हुए, अब आप मेरी बारी भी विलम्ब न कीजिए !! मेरी सभी त्रुटियों का निवारण भी आप ही के द्वारा संभव है, हे कृपा सागर!! आपके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है🙏♥️
हे आर्तत्राण परायण मैं आपकी शरण में हूँ!-
रावन त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीचर मारो ॥
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥
(संकट मोचन)
प्रभु की कृपा का आवरण हमें प्रभु के होने का संदेश देता है,
दृढ़ प्रतिज्ञ साधक:- जिसके जीवन का उद्देश्य साधना ही है, ऐसे साधक को परमात्मा किसी न किसी रूप में यह अनुभव करवाते हैं कि वे हमारे साथ ही हैं, जिससे साधक का साधन रूपी ताप शांत हो जाता है...! यह सर्वविदित है कि आप प्राणिमात्र के सहायक हैं!
ऐसे अरक्षित रक्षक की मैं शरण में हूँ!-
Recently saw video clip where Shri Ram is saying if you are not devoted towards your ancestors, let the deities far away even the all generous almighty God don't even accept your offering.
It suggests that whatever might be the situation, accept it, respect it and then develop it till it resembles the divinity in your heart.-