तख़्ती चाक किताबें बस्ता,
छोटा बच्चा लम्बा रस्ता..
दादी नानी डांट दुपहरी,
सब आपस में थे वाबस्ता..
एक अठन्नी दिन भर चलती,
टॉफ़ी कुल्फ़ी सब कुछ सस्ता..
कंचे लट्टू चूरन गोली,
इन सब को दिल आज तरसता..
क्यूँ ‛‛अम्बर’’ पर हमलावर है,
यादों का इक फौजी दस्ता..!!-
16 JUN 2019 AT 10:11
28 NOV 2019 AT 23:43
उसकी हर बात को शराखो पर रखा है मैंने,
ख़ुद को उसका करके,अपने जिस्म को गिरवीं रखा मैंने-