वक़्त की मार सह-सह कर
रोज-रोज अपने गुनाहों का भार ढो-ढो कर
मै एक ज़िन्दा लाश बन चुका हूँ ,
दूर रहना मुझसे ऐ जिन्दगीं
आज दिलो को हँसाने वाला पुराना आशिक नही
गला काटने वाला
एक खतरनाक हथियार बन चुका हूँ |-
तेरी झील सी आंखों में
मैंने डूबते देखा अपना दिल और दिमाग़ |
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कुछ गुस्ताखियां कर
मैं वहां से यहां आया हूं ,
माफ़ करना
मैं कुछ दर्द ज्यादा ही अपने साथ लाया हूं |
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ठंड लग रही होगी तुम्हें
आओ तुम्हें अपनी कहानियों में छुपा लेता हूं |
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ना जाने ये किन गलियों में भटका हूं मैं
दूर-दूर तक ना कोई करीब हैं ,
उलझे-उलझे से रहते हैं लोग
शायद सस्ते में बिकता यहां सबका ज़मीर हैं |
किसी का मिट्टी का घर
तो किसी का घर मिट्टी में विलीन हैं ,
ऐसे लगता हैं इनको देख
जैसे सदियों से यहां सारे गरीब हैं |
आसमान सहारे मैं बढ़ता
चांद की रोशनी इनके आंगन में ज़रूर हैं ,
झूठ नहीं लगती मुझे इनकी कहानियां
बारिश में दिखता साफ़-साफ़ देवताओं का रौद्र रूप हैं |-
कुछ उसकी मजबूरियां - कुछ तेरी नादानियां
इन सब का मोल तो हर कोई चुकाता हैं ,
मान या ना मान मेरी बातों को तू भी
पर बादलों के पीछे छुप-छुप कर ये चांद भी तो हर रोज़ आंसू बहाता हैं |
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कोई परेशानी खंजर बन सीने में ना उतर जाए मेरे
तुम उससे पहले ही
मेरे माथे को चूम अपनी बाहों में घेर लेती थी |
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