जान के भी क्यों है अन्जान तू,
हद से ज्यादा चाहा था जिसने तुझे;
पल में उसको छोड़ा था तुमने,
हुई थी ये खता तुझसे,
जिसकी मिल रही है अब सजा तुझे....-
हिन्द की पहचान है हिन्दी,
आर्यों का स्वाभिमान है हिन्दी...-
हर उम्र को इक उम्र में हमउम्र चाहिए,
जीने को जिन्दगी तजुर्बा-ए-उम्र चाहिए...-
कि तुम महलों में रहने वाली,
मैं उसका चौकीदार प्रिये;
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये...-
खिलौने सी जिन्दगी में,
वो चॉबी-सा कमाल करती है;
हाँ वो माँ ही है जो,
हर इक काम लाजवाब करती है...-
किस के सिर सेहरा सजा,
किस के कफन था सजा;
कौन जला रहा जहाँ,
कौन जल रहा यहाँ;
हिम्मत दिखा घर से जो निकली थी,
अब डरी सहमी वही घर में बैठी थी जनता;
जिताया था किसने किसको छोड़ दो,
जीतकर भी तो यहाँ हार गई थी जनता...-
इतिहास भी वर्तमान से संवाद करता होगा,
अपने कालखण्डों का गुणगान करता होगा...-
As more your thinking frequency is match with your friend, as longer your friendship will exist.
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कि खुद तपता सूरज-सा बन,
हमारे जीवन में उजाला किया है;
पापा के हौसलों से हिम्मत बढ़ा,
हमने अपने लक्ष्यों को पाया है...-
कि वही सुबह है वही अब शाम भी,
दिल की धड़कन वही अब आराम भी;
रातों का ख्वाब भी चेहरे का मुस्कान भी,
है उसी से अब मेरे जीवन का शान भी...-