ब्राह्मण के है तीन संस्कार
ज्ञान , तपस्या, परोपकार-
हर तरफ मचा हुआ है हाहाकार
वहसी कर रहे है इज्जत तार तार
अब कौन किसको न्याय दिलाये
कोई सुनता नही किसी की पुकार-
तेरी आवाज की खुशबू का नशा है
जो अब तक मेरे तन बदन मे बसा है
उसे उतारने को कई गैर से बात की
पर वो उतरा नही जानें कैसा फंसा है
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अगर मोहब्बत न होती तो हम यूं बर्बाद न होते
तजुर्बा-ए-इश्क़ से इस कदर हम आबाद न होते
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मोहब्बत का गम महबूब से ही मिटता है
वो बात और है वो पहला नही हो दूसरा-
ये जरूरी तो नही जैसा तुम करो वैसा वो भी चाहें
बेशक मंजिल एक हो पर अलग हो सकती है राहें
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चेहरे पर मुस्कान ,जिसके सीने मे दर्द है
कोई और नही वो इसी दुनिया का मर्द है
जो न ज्यादा खुश होता है न ज्यादा दुखी
सब कुछ छिपाये जीता है वो ऐसा फ़र्द है-
तुमने अपना किरदार बदल लिया
एक बार नही हर बार बदल लिया
तुम कहते थे इश्क एक से होता है
फिर क्यों अपना यार बदल लिया-