ऐ मोहब्ब्त,
तोडकर निभानेके वादे,
अब जिंदगी जिनेकी वजह ना दे...
बिखर गया हू अब बाकी क्या है,
अब मेरे टूटने का औरो को मजा ना दे...
पहन लुंगा खुद ही कमिज़ बेवफाइकी,
ताकी तुझे कोई बेवफाई की सजा ना दे...
बंजर जमीन,खुला आसमान बहोत है,
अब कोई मुराद, कोई रजा ना दे ....
अनिकेत व.प्र. देशमुख-
अजीब हश्र था चराग का रिश्ते के हमारे,
हम तेल डालकर जलाते चले गये,
तूम फ़ूक मारकर बुझाते चले गये ।
अनिकेत व.प्र. देशमुख
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जमीन भी मेरे पाँव पर चलने लगी हैं,
उम्र की भी जागीर अब ढलने लगी हैं ।
वक्त की रोटी भी अब जलने लगी हैं,
हुस्न की भी खैरात अब गलने लगी हैं ।
ढलते सूरज को चांदनी मलने लगी हैं,
दिन ब दिन मौत भी अब टलने लगी हैं ।
अनिकेत व.प्र. देशमुख
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जहा पत्थरो के नाम भारी दान करते है,
जहा लुटेरो के बाजार सरेआम भरते है..
यह ऐसा देश है साहब,
जहा एक तरफ भूख से लोग मरते है,
वही कइ पत्थरो के दरबार भरते है |
अनिकेत व.प्र. देशमुख-
ऐसा तो कभी नही था,
के मुझे निभाना नही आया,
वरना तू ही देख,
आज तक मेरी कोई रात को,
तुझे याद किये बिना गुजरना नही आया|
अनिकेत व.प्र. देशमुख-
आ आज एक काम करता हू,
मेरी सारी दौलत तेरे नाम करता हू..
मिटा दे जो हर निशानिया तेरी,
उसके नाम भारी इनाम करता हू,
के यादो का बोझ हलका हो जाये,
आ हर खत को बेनाम करता हू,
तुझपर कोई इलजाम ना लगे,
मै खुद ही को बदनाम सरेआम करता हू |
अनिकेत व.प्र. देशमुख
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सरहद की भी दास्तान अजीब होती होगी,
खून से लतपत जवान को बिखरते देख ,
भारत माता रोती होगी ।
अनिकेत व.प्र. देशमुख-
तमाम कोशिशो के बाद भी ,
किसिके सपने को टूटंते देखा है ।
टूटंते तारे का दर्द,
आज चाँद की आखों मे देखा है ।।
अनिकेत व.प्र. देशमुख-
रोशनी के गुदगुदी से,
नींद हसकर खूल गई ।
आंधियों के मय-कशी से,
तितलिया संभल गई ।
लड़खड़ाती बिजलीयों से,
शाम डरकर ढल गई ।
रोशनी के गुदगुदी से,
नींद हसकर खूल गई ।
अनिकेत व.प्र. देशमुख-